Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : : २१ :
ज्यां अनंत सुख भर्युं छे ने दुःखनुं ज्यां नाम पण नथी–एवुं तारुं चैतन्य–
तत्त्व–तेमां अंतरमां जा, अने तेनी साथे मित्रता कर. बहारनी कोई प्रतिकूळता
जेने दुःख आपी न शके–अने जेमां ऊतरतां ज अनंत सुख ऊपजे एवा चैतन्यनी
प्रीति तुं केम नथी करतो? ने बहारना संयोगनो प्रेम करीने, तेनी साथे मित्रता
करी करीने तारा आत्मतत्त्वने तुं केम भूली रह्यो छे! तेमां तो अनंत दुःख छे.
भाई, तारा स्वरूपनो विचार तो कर! तारा चैतन्यधामनी संपदानो अपार महिमा
केवळी भगवाने वर्णव्यो छे, अरे, एक वार तुं तुलना तो कर के क््यां सुख छे ने
क्यां दुःख छे? मारा स्वरूपमां अनंत सुख ने बहारना संयोगमां किंचित सुख
नहि,–आम न्यायनेत्रने ऊघाडीने, सम्यग्ज्ञान प्रगट करीने तुं विवेक कर...ने ए
बाह्यवृत्तिनी प्रवृत्तिनी बाळीने, चैतन्य सुखमां प्रवृत्त था. शीघ्र तुं बाह्यबुद्धि
छोडीने अनंत सुखधाम एवा आत्मामां तत्पर था. भाई! हवे तुं गंभीर था...तुं
डहापणवाळो–विवेकवाळो थईने तारा आत्माने संभाळ. पिता जेम पुत्रने शिख
आपे तेम अहीं संतो शिख आपे छे के हे वत्स! भवचक्रमां तुं घणुं घणुं रखडयो.
हवे तो तुं विवेकी था....विवेकी ने गंभीर थईने हवे तारा स्वकार्यने संभाळ. तारुं
सुखधाम अंतरमां छे तेमां तुं ऊतर.
सिद्धभगवाननुं जेवुं निरूपाधि स्वरूप छे एवुं तारुं स्वरूप तारे उपादेय छे;
परभावनी उपाधि वगरनुं तारुं स्वरूप तुं जाण. ज्ञानादि अनंत गुणो–जेटला सिद्ध
प्रभुमां छे तेटला ज तारामां सदाय प्राप्त छे. ज्यां जा त्यां तारा बधाय गुणो तारी
साथे ज छे, ने ते गुणो निज–निज पर्यायरूपे परिणम्या करे छे. तारो आत्मा तारा
गुण–पर्यायवाळो छे, पण तारो आत्मा शरीरवाळो नथी, संयोगवाळो नथी. एटले
तारा गुण–पर्यायोनुं कार्य बहारमां नथी, के बहारथी ते आवतुं नथी. तारामां ज
तारुं सर्वस्व छे. माटे तारामां ज तुं जो. तारा शुद्ध–गुण पर्यायवाळो आत्मा ज
उपादेय छे. केवळज्ञान अने सिद्धपर्याय प्रगटे एवी ताकात तारामां ज छे. आवी
ताकातवाळा तारा स्वद्रव्यने प्रतीतमां–ज्ञानमां–अनुभवमां लईने उपादेय कर, ए
तात्पर्य छे.
गुणपर्ययवत् द्रव्यं’ एम सिद्धांतमां कह्युं छे, एटले ज्यां दरेक द्रव्य पोते ज
पोताना गुणपर्यायवाळुं छे त्यां तेना गुण–पर्यायमां बीजो शुं करे? चेतन के जड बधाय
पदार्थो निजस्वभावथी ज गुण–पर्यायरूप छे, तेमां एवुं क््यां आव्युं के बीजो होय तो
तेना गुणपर्याय थाय? बीजाथी आना गुण–पर्यायमां कांई थाय एवी जेनी मान्यता छे
तेणे खरेखर द्रव्यने ‘गुणपर्यायवत्’ जाण्युं नथी. द्रव्य–गुण–पर्यायरूप वस्तुने ज जे
नथी जाणतो ते कारण–कार्यने, उपादान–निमित्तने के निश्चय–व्यवहारने पण साचा
स्वरूपे जाणी शकतो नथी.