कांई थयुं के परथी मारामां कांई थयुं–एवी पराश्रित–मिथ्याबुद्धि रहेती नथी;
पोताना स्वद्रव्यनो आश्रय थतां सम्यक्त्वादिरूप परिणमन थाय छे, एटले के
मोक्षमार्ग थाय छे.
अनुभववामां आवे तो ते परंपरा तुटी जाय छे ने अतीन्द्रिय आनंदनी परंपरा
चालु थाय छे. शुद्ध निश्चयथी आत्मामां रागद्वेष नथी, ए तो निर्मळ ज्ञानदर्शन
स्वभाव छे. आवा आत्माना स्वसंवेदनथी ज अतीन्द्रिय आनंद थाय छे, माटे ते
ज उपादेय छे.
आनंद थाय–ते ज छे. निर्विकल्प वीतराग आनंद स्वरूप आत्मा छे–तेना
स्वसंवेदनना अभावमां आत्मा रागद्वेषरूप परिणमे छे. अने शुद्धस्वरूपना वेदनथी
ते रागद्वेष टळीने आनंद अने वीतरागभाव प्रगटे छे. आवी वीतरागी
अनुभूतिमां धर्मीने आनंद साथे तन्मय एवो शुद्ध आत्मा ज उपादेय छे.
एवा जे विषय कषायोना परिणाम ते उपादेय नथी; ते विषय कषायोथी रहित एवी जे
निर्विकल्प वीतराग शुद्धात्म–अनुभूति ते ज आराधवा योग्य छे. वीतराग अनुभूतिमां
पोतानो आत्मा ज आराध्य छे. चैतन्यस्वरूप निजात्माथी बहारना जे कोई परद्रव्य छे
तेना तरफना झुकावथी रागद्वेषनी उत्पत्ति थाय छे, ने तेनाथी चारगतिमां भ्रमण थाय
छे. निश्चयथी आ शुद्ध आत्मा ते रागद्वेषथी भिन्न छे, ईन्द्रियोथी ने बाह्यपदार्थोथी भिन्न
छे, कर्मथी ने चार गतिथी भिन्न छे माटे ए समस्त परभावो त्याग करवा योग्य छे.
अंतरमां श्रद्धा–ज्ञान–चारित्ररूप अनुभूतिमां शुद्ध आत्मा ज उपादेय छे. जेने आवी
अनुभूतिनो रंग नथी ते रागथी रंगाई जाय छे.
आवी