अनुभूतिना महिमानी शी वात! एक क्षणनी अनुभूति समस्त कर्मोने भस्म करी नांखे
छे. आवी अनुभूतिवाळो जीव ज जगतमां सुखी छे. अनुभूति वगरना बधाय जीवो
दुःखी–दुःखी ज छे, पछी भले मोटो राजा हो के देव हो. सुख तो आत्मामां छे, तेनी
अनुभूति जेने छे ते ज सुखी छे. भाई, तुं अनादिथी दुःख वेदी रह्यो छे; ए दुःख कांई
तारा स्वभावमां भरेलुं नथी, तारा स्वभावमां तो सुख ज भरेलुं छे–ए स्वभावमां
अनुभूतिवडे प्रवेश कर तो तारी चैतन्यखाणमांथी आनंद अने सुख ज तने अनुभवमां
आवशे. माटे स्वानुभूतिवडे आवो आत्मस्वभाव ज उपादेय छे, एमां ज शांति छे;
बीजे क््यांय शांति–सुख के आनंद नथी ने बीजुं कांई उपादेय नथी.–आम हे शिष्य! तुं
छे.
तने वहालुं? अमने तो लागे छे के तने
पैसा करतां तारुं जीवन वहालुं नथी.
पैसा खातर तारा जीवनने तुं गुमावत
जीवनने गुमावी रह्यो छे ते उपरथी
वधु वहालुं नथी, जीवन करतांय पैसा
तने वधु वहाला छे.–रे मोह!