Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २ : : पोष :
अर्हंतोए सेवेलो स्वाश्रित मोक्षमार्ग
(समयसार सर्वविशुद्धज्ञान–अधिकार–प्रवचनोमांथी)
अहा, आचार्यदेवनी केटली निःशंकता!
शुद्धज्ञानस्वभावनी सन्मुखताथी पोते मोक्षमार्गना उपासक
थईने, बधाय अर्हंतदेवोने साक्षीपणे उतारीने बेधडकपणे कहे
छे के अहो, बधाय अर्हंतदेवोए आवा शुद्धज्ञानमय दर्शन–
ज्ञान–चारित्रनी ज मोक्षमार्गपणे उपासना करी छे–एम
जोवामां आवे छे. बधाय अर्हंतदेवोए उपासेलो ने उपदेशेलो
आ ज एक मार्ग छे, बीजो कोई नहि. स्वद्रव्यनो आश्रय
करीने मुमुक्षुए आ एक ज मार्ग सेववायोग्य छे. आवा
मार्गप्रकाशी सन्तोने नमस्कार हो.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र के जे शुद्धआत्माना आश्रये छे ते ज एक मोक्षमार्ग
छे. देहाश्रित एटले के पराश्रित एवुं जे द्रव्यलिंग तेना आश्रये मोक्षमार्ग नथी. भाई,
मोक्षनो मार्ग तो आत्माना आश्रये होय, के परना आश्रये? अर्हंतभगवंतोए बधाये
केवो मार्ग सेव्यो? के शुद्धज्ञानमयपणाने सेव्युं ने देहाश्रित एवा द्रव्यलिंगना ममकारने
छोडयो. शुद्धज्ञानमय एवा जे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र तेने ज मोक्षमार्गपणे बधाय
अर्हंतभगवंतोए उपास्या,–एम अमारा जोवामां आवे छे. कोई कहे–शुं तमे बधाय
तीर्थंकरोने जोई लीधा?–तो कहे छे के हा; स्वानुभवथी आवो मोक्षमार्ग अमे जाण्यो छे
ने आवो मार्ग अमे उपासी रह्या छीए, ते उपासनानी निःशंकताना जोरे अमे जाणी
लीधुं छे के जे कोई जीवो मोक्ष पाम्या तेओ आवा मार्गनी उपासनाथी ज मोक्ष पाम्या
छे. अनंता तीर्थंकरो–अर्हंतोए आ ज मार्ग सेव्यो छे ने आ ज मार्ग उपदेश्यो छे.
त्रणकाळना बधा मोक्षगामी जीवोने माटे मोक्षनो आ एक ज मार्ग छे. कयो मार्ग? के
शुद्धज्ञानमय, एटले के जरापण रागमय नहि, एवा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते ज
मार्ग छे; ते मार्ग आत्माना ज आश्रये छे.
अहा, स्वाश्रितमार्गनी आवी वात समजे तो बधा पराश्रयभावनुं ममत्व छूटी
जाय. मुनिने जे विकल्प छे, ते पण शुद्ध ज्ञानथी बहार छे, ते विकल्पने आश्रित मार्ग
नथी, मार्ग तो शुद्ध ज्ञानना आश्रये ज छे. अरे, मुनिना महाव्रतना विकल्पने आश्रित
पण ज्यां मोक्षमार्ग नथी त्यां जड देहनी क्रियाने आश्रित मोक्षमार्ग होवानी मान्यता
तो क््यां रही? जो देहनी क्रियाने आश्रये मोक्षमार्ग होत तो अर्हंतभगवंतो ते देहनुं