Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : : ३ :
ममत्व छोडीने शुद्धज्ञानमां केम ठरत? अर्हंत भगवंतोए तो देहनुं ममत्व छोडीने शुद्ध
ज्ञानमय एवा निश्चयरत्नत्रयने ज मोक्षमार्ग तरीके सेव्या; –आम अर्हंतोनी साक्षी
आपीने, पोताना स्वानुभवसहित आचार्यदेव कहे छे के, अर्हंत भगवंतोए आम कर्युं
ते उपरथी नक्की थाय छे के आवो ज परमार्थ मोक्षमार्ग छे; बीजो मोक्षमार्ग नथी.
दर्शन–ज्ञान–चारित्रना शुद्धभावरूपे परिणमेलो आत्मा ते ज परमार्थे मोक्षमार्ग
छे, तेने ‘कारणसमयसार’ कहेवाय छे. राग ए तो आस्रवतत्त्व छे, तेने परमार्थे आत्मा
ज कहेता नथी. शुद्धपरिणाममां अभेद परिणम्यो तेने ज परमार्थ आत्मा कह्यो छे. मुनि
तो खरेखर ते ज छे के जेओ सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने मोक्षमार्गपणे सेवी रह्या छे.
मुनिने के गृहस्थने कोईनेय राग ते मोक्षमार्ग नथी. शुद्धज्ञानना आश्रये जेटला
रत्नत्रय छे तेटलो ज मोक्षमार्ग छे.
मोक्ष शुं छे? मोक्ष ए सर्व कर्मना अभावरूप शुद्ध आत्मपरिणाम छे.
मोक्षनुं कारण शुं? के जेवुं कार्य शुद्ध छे तेवुं ज तेनुं कारण पण शुद्ध ज छे. कारण
अने कार्यनी जात एक ज होय. ओछा–पूरानो भेद होय पण बंनेनी जात तो एक ज
होय. कार्य शुद्ध अने तेनुं कारण अशुद्ध–एम न बने. कार्य वीतराग अने तेनुं कारण
राग–एम न होय. जेम मोक्ष ते पूर्ण शुद्धतारूप अने रागना अभावरूप छे तेम ते
मोक्षना साधनरूप रत्नत्रय ते पण शुद्ध अने रागना अभावरूप ज छे. भले
साधकदशामां केवळज्ञान जेवी पूर्ण शुद्धि न होय, तो पण त्यां जेटली शुद्धता छे तेटलो ज
मोक्षमार्ग छे, ने जेटलो राग छे ते मोक्षमार्ग नथी. धर्मात्मा ते रागने मोक्षमार्गपणे
नथी सेवता, पण रत्नत्रयनी शुद्धिने ज मोक्षमार्गपणे सेवे छे.
हे भाई, तीर्थंकरोए तो आवो शुद्ध आत्माश्रित रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग सेव्यो छे,
तो तुं वळी दोढ डायो थईने एनाथी बीजो मोक्षमार्ग क््यांथी लाव्यो? शरीरनी क्रियाने
आश्रित के रागने आश्रित मोक्षमार्ग थाय–ए तो तारी दुर्बुद्धि छे. अरे, देहनी क्रियाथी
धर्म थाय–ए वात अर्हंतना शासनमां केवी? अर्हंतना शासनमां तो देहने परद्रव्य कहेल
छे, ते परद्रव्यने आश्रित आत्मानो मोक्षमार्ग जरापण नथी. माटे हे भव्य! एवा
परद्रव्यनुं ममत्व छोड ने शुद्ध आत्मानो आश्रय करीने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप
मोक्षमार्गमां तारी बुद्धि जोड.
शुद्ध ज्ञानमय आत्मा छे, ते अमूर्तिक छे; आवा शुद्ध ज्ञानमय आत्मामां देह के
रागादि नथी, एटले ते देहाश्रित के रागाश्रित मोक्षमार्ग नथी. देहथी ने रागथी पार
एवा शुद्ध ज्ञानमय आत्मानुं सेवन ते ज मोक्षमार्ग छे. परंतु द्रव्यलिंग (एटले के