Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 7 of 29

background image
: ४ : : पोष :
नग्नशरीर के महाव्रतादिना शुभ (विकल्पो)–के जे शुद्धज्ञानथी खरेखर भिन्न छे ते
मोक्षमार्ग नथी. शुद्धज्ञानस्वभावनी सन्मुखताथी पोते आवा मोक्षमार्गना उपासक
थईने आचार्यदेव बधाय अर्हंतदेवोने साक्षीपणे उतारीने निःशंकताथी कहे छे के अहो!
बधाय भगवान अर्हंतदेवोए आवा शुद्ध ज्ञानमय दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी ज
मोक्षमार्गपणे उपासना करी छे–एम जोवामां आवे छे.–
‘श्रमणो, जिनो तीर्थंकरो, ए रीते सेवी मार्गने,
सिद्धि वर्या; नमुं तेमने, निर्वाणना ते मार्गने.’ (प्रवचनसार)
–वाह, जुओ आ तीर्थंकरोनो मार्ग! अमे तो देहादि द्रव्यलिंगनुं ममत्व छोडीने,
शुद्ध ज्ञानना सेवन वडे दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी उपासनाथी आवा मोक्षमार्गने साधी
रह्या छीए, ने बधाय तीर्थंकरोए बधाय संतोए आ ज रीते मोक्षमार्गनी उपासना करी
हती–एम निःशंकपणे अमारा निर्णयमां आवे छे.
जो देहमय लिंग के ते तरफना शुभ विकल्पो ते मोक्षनुं कारण होत तो अर्हंत
भगवंतो तेनुं ममत्व छोडीने दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी उपासना शा माटे करत?
द्रव्यलिंगथी ज मोक्ष पामी जात! –परंतु अर्हंत भगवंतोए तो देहादिथी ने रागादिथी
विमुख थईने शुद्धज्ञानमय चिदानंद तत्त्वनी सन्मुखता वडे दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी ज
उपासना करी; माटे ए नक्की थयुं के देहमय लिंग ते मोक्षमार्ग नथी, राग पण
मोक्षमार्ग नथी, परमार्थे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी उपासना ते ज मोक्षमार्ग छे.
दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी उपासना कई रीते थाय? –के शुद्ध ज्ञानमय आत्माना सेवनथी
ज (एटले के स्वद्रव्यना सेवनथी ज) ते रत्नत्रयरूप मोक्षमार्गनी उपासना थाय छे.
–ने ए ज शास्त्रनी अनुमति छे.
अहा, आचार्यदेवनी केटली निःशंकता! अंदर पोते तो निर्विकल्प आनंदमां
झुलता झुलता आवा मोक्षमार्गने साधी रह्या छे, ने जगतने बेधडकपणे कहे छे के:
बधाय अर्हंत भगवंतोए उपासेलो आ ज एक मार्ग छे, बीजो कोई नहि. बधाय
भगवान अर्हंन्तदेवोने शुद्ध ज्ञानमयपणुं छे, ने तेओए द्रव्यलिंगना आश्रयभूत
शरीरनुं ममत्व छोडी दीधुं छे, एटले द्रव्यलिंगना त्यागवडे दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी
मोक्षमार्गपणे उपासना जोवामां आवे छे; बधाय तीर्थंकरोए मोक्षमार्ग आ एक ज रीते
उपास्यो छे, –एम अमारा ‘जोवामां आवे छे.’
कोई कहे के–‘जोवामां आवे छे–एम कह्युं तो शुं आचार्यदेवे अर्हंतदेवोने नजरे
जोया छे? अत्यारे, के कुंदकुंदस्वामी हता त्यारे पण, अहीं अर्हंतदेव तो हता नहि, तो
कई रीते जोया? ’