नग्नशरीर के महाव्रतादिना शुभ (विकल्पो)–के जे शुद्धज्ञानथी खरेखर भिन्न छे ते
मोक्षमार्ग नथी. शुद्धज्ञानस्वभावनी सन्मुखताथी पोते आवा मोक्षमार्गना उपासक
थईने आचार्यदेव बधाय अर्हंतदेवोने साक्षीपणे उतारीने निःशंकताथी कहे छे के अहो!
बधाय भगवान अर्हंतदेवोए आवा शुद्ध ज्ञानमय दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी ज
रह्या छीए, ने बधाय तीर्थंकरोए बधाय संतोए आ ज रीते मोक्षमार्गनी उपासना करी
हती–एम निःशंकपणे अमारा निर्णयमां आवे छे.
द्रव्यलिंगथी ज मोक्ष पामी जात! –परंतु अर्हंत भगवंतोए तो देहादिथी ने रागादिथी
उपासना करी; माटे ए नक्की थयुं के देहमय लिंग ते मोक्षमार्ग नथी, राग पण
मोक्षमार्ग नथी, परमार्थे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी उपासना ते ज मोक्षमार्ग छे.
दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी उपासना कई रीते थाय? –के शुद्ध ज्ञानमय आत्माना सेवनथी
ज (एटले के स्वद्रव्यना सेवनथी ज) ते रत्नत्रयरूप मोक्षमार्गनी उपासना थाय छे.
–ने ए ज शास्त्रनी अनुमति छे.
बधाय अर्हंत भगवंतोए उपासेलो आ ज एक मार्ग छे, बीजो कोई नहि. बधाय
शरीरनुं ममत्व छोडी दीधुं छे, एटले द्रव्यलिंगना त्यागवडे दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी
मोक्षमार्गपणे उपासना जोवामां आवे छे; बधाय तीर्थंकरोए मोक्षमार्ग आ एक ज रीते
उपास्यो छे, –एम अमारा ‘जोवामां आवे छे.’
कई रीते जोया? ’