Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : : प :
तेने अहीं कहे छे के अरे भाई! आत्मामां ज्यां मोक्षमार्गनो निर्णय थयो,
साक्षात् अनुभव थयो, त्यां निस्संदेह खातरी थई गई के बस, आवो ज मोक्षमार्ग
त्रणे काळे होय. अने वळी कुंदकुंदाचार्यने तो विदेहक्षेत्रमां साक्षात् तीर्थंकर
भगवाननो भेटो पण थयो हतो, आठ–आठ दिवस सुधी भगवान सीमंधर
परमात्मानी सभामां दिव्य ध्वनिनुं साक्षात् श्रवण कर्युं हतुं, ज्यां अनेक केवळज्ञानी
भगवंतो बिराजे छे, ज्यां गणधरदेवो अने मुनिवरोना टोळा आवा मोक्षमार्गने
साधी रह्या छे; तेमने नजरे नीहाळीने, अने तेवो मोक्षमार्ग पोताना आत्मामां
प्रगटावीने आचार्यदेव कहे छे के हे भाई! मोक्षमार्ग तो आ शुद्ध ज्ञानमय
आत्माना आश्रये रत्नत्रयनी उपासनाथी ज थाय छे, –एम अमारा जोवामां आवे
छे, बीजो कोई मोक्षमार्ग अमारा जोवामां आवतो नथी. माटे तुं पण शुद्ध ज्ञानमय
स्वद्रव्यनो आश्रय करीने आवा ज मोक्षमार्गने उपास. मुमुक्षुओए आ एक ज
मार्ग अत्यंत आदरपूर्वक सेववा योग्य छे.
* मार्गप्रकाशी सन्तोने नमस्कार हो *
संसारमां हजारो प्रकारनी
प्रतिकूळता क््यारेक ज्यारे एक सामटी
आवी पडे, क््यांय उपाय न सूझे, ते
प्रसंगे मार्ग शुं? –एक ज मार्ग के–
‘ज्ञानभावना.’
‘ज्ञानभावना’ क्षणमात्रमां
बधी मुंझवणने खंखेरी नांखीने
हितमार्ग सूझाडे छे, ने कोई अलौकिक
धैर्य तथा अचिंत्य ताकात आपे छे.