Atmadharma magazine - Ank 256
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: महा : : ७ :
रूप छे, ने निर्मळ पर्यायो ज शक्तिनुं कार्य छे. जे विकार छे तेनी रचनामां आत्मशक्ति
खरेखर कारणरूप नथी, ने विकार पर्याय ते खरेखर आत्मशक्तिनुं कार्य नथी. एटले
निर्मळ पर्यायरूप परिणमी ते शक्तिने ज निश्चय–आत्मा (परमार्थ आत्मा) कह्यो, अने
मलिन पर्यायरूप परिणमनने व्यवहार–आत्मा कह्यो, एटले तेने खरेखर आत्मा न कह्यो.
आम व्यवहारना निषेध अने निश्चयना स्वीकार पूर्वक ज शुद्ध आत्मशक्ति प्रतीतमां आवे
छे. आवो अनेकान्त ते जैननीति छे. आवी जैननीतिने सम्यद्रष्टि जीवो ज जाणे छे.
(२०) शक्तिओना ज्ञाननुं फळ : शुद्धात्मप्रसिद्धि
मंद राग ते चैतन्यनी वीर्यशक्तिनुं खरूं कार्य नथी; चैतन्यनी वीर्यशक्तिनुं खरूं
कार्य तो वीतरागी निर्मळ पर्यायनी रचना करवानुं छे एटले आत्मा शुभ रागने रचे,
के शुभराग वडे आत्मानी निर्मळ पर्याय रचाय ए वात रहेती नथी. रागनी रचना करे
तेने आत्मा कहेता नथी, निर्मळ पर्यायने रचे एटले के सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपे
परिणमे तेने ज शुद्ध आत्मा कहीए छीए. अने तेनी प्रसिद्धि ते ज आ शक्तिओना
ज्ञाननुं फळ छे.
(२१) उत्तम आत्मा...उत्तम शरीर
प्रभो, जगतमां जे उत्कृष्ट आत्मशक्तिओ छे ते बधी आत्मशक्तिओ आपने प्रगटी
गई छे; आपने पूरुं ज्ञान ने पूरी शांति प्रगटी त्यां जगतना शांतरसवाळा बधा
परमाणुओ पण आपनी पासे आवीने शांत–देहरूप परिणमी गया. जुओ तो खरा,
निमित्त–नैमित्तिक संबंध! आत्मानो कोई अद्भुत स्वभाव छे–एने जाणतां ज्ञानीने आनंद
थाय छे ने अलौकिक महिमा आवे छे. सर्वज्ञता आदि उत्कृष्ट शकितओ जे आत्माने प्रगटी,
त्यां जगतना बधा उत्कृष्ट परमाणुओ ते आत्माना देहरूप परिणम्या; कोई परमाणु बाकी
न रह्या. जेटली उत्कृष्ट चैतन्य शक्तिओ हती ते आत्मामां प्रगटी गई, अने जेटला उत्कृष्ट
परमाणुओ हता ते देहरूप रचाई गया. एवो ज लोकोत्तर मेळ छे. चैतन्यनुं परिणमन
उत्कृष्ट थयुं त्यां जगतना रजकणो पण उत्कृष्ट देहपर्यायरूपे परिणम्या.
(२२) शक्तिनी प्रतीतद्वारा साधकनी परिणति ऊभराय छे ने केवळज्ञानने तेडावे छे
जेम खोवायेलो वहालो पुत्र आवे त्यां तेने देखतां ज माताना हैयामां
वात्सल्यथी दूध ऊभराय छे. तेम आत्मशक्तिओने दर्शावनारी भगवाननी वाणी
सांभळतां ज मुमुक्षुना हैयामां आत्मशक्तिना अंकुरा जागे छे...परिणतिमां आनंदना
दूध ऊभराय छे. अरे, आत्मशक्तिनी आवी वात सांभळतां कोने पर्यायमां निर्मळता
न उल्लसे? जेेणे आवी शक्तिओवाळा आत्माने प्रतीतमां लीधो तेणेेे केवळज्ञानने
पोताना आंगणे तेडाव्युं. शक्तिनी प्रतीत करी त्यां भान थयुं के अमारा आत्मामां
केवळज्ञान ज शोभे....अल्पज्ञता के विकार ते अमारा आत्मामां न
शोभो.....केवळज्ञाननो ज आदर