Atmadharma magazine - Ank 256
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: महा : : ८ :
रह्यो एटले तेणे केवळज्ञानने पोताना घरे बोलाव्युं. ते ‘सर्वज्ञपुत्र’ थयो...ते
जिनेश्वरदेवनो लघुनंदन थयो.
(२३) अद्भुत निधिवाळो चैतन्यरत्नाकर
आत्मा अनंत शक्तिसंपन्न चैतन्य रत्नाकर छे. जेम समुद्रमां अनेक रत्नो होय छे
तेथी तेने ‘रत्नाकर’ कहेवाय छे; तेम आत्मानी एकेक शक्ति ते अचिंत्य महिमावंत
गुणरत्न छे, एवा अनंता चैतन्यरत्नो आ आत्मामां छे तेथी आत्मा अद्भुतनिधिवाळो
चैतन्यरत्नाकर छे. पाणीना समुद्रमां रत्नो तो संख्याता के बहु तो असंख्याता होय, पण
आ चैतन्यसमुद्रमां तो अनंतरत्नो छे. जेनुं एकेक रत्न अपार महिमावाळुं छे एवा आ
अद्भुत चैतन्यरत्नाकरना महिमानी शी वात?–एनी प्रभुतानी शी वात? अहा! मारामां
ज आवा निधान भरेला छे पछी पराश्रयनी पराधीनताथी मारे शुं प्रयोजन छे? पोताना
चैतन्यनिधाननी महत्ता भासतां आखा जगतनी महत्ता ऊडी जाय छे, ने स्ववीर्यनो वेग
आत्मा तरफ वळीने आत्मानी प्रभुताने साधे छे.
(२४) सिद्धनी प्रभुता ने तारी प्रभुतामां फेर नथी
हे जीव! सिद्धभगवंतोने अखंड प्रतापवंती स्वतंत्रताथी शोभीत जेवी प्रभुता
प्रगटी छे तेवी ज प्रभुता तारा आत्मामां छे. तारा आत्मानी स्वतंत्र प्रभुताना
प्रतापने कोई खंडित करी शके तेम नथी. अनादिथी तें ज तारी प्रभुताने भूलीने तेनुं
खंडन कर्युं छे. हवे तारा आत्मस्वभावनी प्रभुताने प्रतीतमां लईने तेनुं अवलंबन कर,
तेथी तारी पामरता टळी जशे ने अखंड प्रतापवाळी चैतन्यप्रभुताथी तारो आत्मा
स्वतंत्रपणे शोभी ऊठशे...तुं पण अनंतसिद्धोनी वस्तीमां जईने सादी–अनंत रहीश.
(२प) सम्यग्दर्शनमां प्रभुता
सम्यग्दर्शन थतां ज आत्मामां प्रभुतानो अंश प्रगटे छे. सम्यग्दर्शन वगरना
जीवो, शक्तिपणे प्रभु होवा छतां पर्यायमां पामर छे. जे जीव सम्यग्दर्शन वडे आत्मानी
प्रभुताने ओळखे छे ते जीव अल्पकाळमां ‘प्रभु’ थई जाय छे. स्वतंत्रताथी शोभित
एवी प्रभुताना अखंड प्रतापने कोई तोडी शकतुं नथी. सम्यग्दर्शन थतां ज आत्मानी
प्रभुता प्रगटवा मांडी. रत्नत्रयमां सम्यग्दर्शनने पण देव कहेल छे.
(२६) वीतरागी वीरनी साची वीरता
वीर्यवंत आत्मानी साची वीरता तो एमां छे के पोते पोताना वीतरागी
शांतरसनी रचना करे...आवी वीतरागी वीरता वडे पोतानी प्रभुताने प्रगटावे ते ज
साचो वीर छे. विकार वडे स्वरूपने हणे एने वीर केम कहेवाय? पोताना निर्मळ
स्वरूपनी रचना न करी शके तेने वीर कोण कहे? रागने तोडीने पोताना निर्मळ
स्वरूपने रचे, पोतानी प्रभुताने प्रगट करे ए ज खरो वीर छे. आवी वीरता ए
आत्मानी वीर्यशक्तिनुं खरूं कार्य छे. अने ए ज अद्भुत महिमा छे. वीतरागी वीरनी
ए ज साची वीरता छे के निर्मळ वीतरागभावनी रचना करे.