Atmadharma magazine - Ank 256
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 29

background image
: महा : : ११ :
तो स्वभावनी अनंतशक्ति सांभळतां अंदरमां एम उल्लसी जाय के–झणझणाट मारतो
हुं अंदर ऊतरुं–के तरत मारा अनंत गुणोनी खीलवट करुं. स्वभावनो ताग लेवा ऊंडे
ऊतर्यो त्यां विकल्पनो रस रहेतो नथी, विकल्प तूटीने स्वभावना महिमामां ज्ञान लीन
थई जाय छे. आम निजशक्तिनो महिमा सांभळतां मुमुक्षुनी परिणति झणझणाट करती
अंतर्मुख थाय छे.
(३६) बहादुर साधक
जेम बहादुर वीर्यवान बाळक सिंहथी ये डरे नहि, ऊलटो सिंहनुं मोढुं झालीने
कहे छे के उघाड तारुं मों, मारे तारा दांत गणवा छे! तेम चैतन्यने साधनारो वीर्यवान
–बहादूर साधक कर्मरूपी सिंहथी डरे नहि, ज्यां ए पोताना स्वरूपमां लीन थाय त्यां
कर्मो तो कयांय दूर भागी जाय. ‘शुं करीए, कर्मो हेरान करे छे, प्रतिकूळता घणी छे’–
एम जे डरपोक छे–कायर छे ते चैतन्यने साधी शकतो नथी. चैतन्यने साधवा जे
अंतरमां ऊतर्यो ते वीरने जगतमां कोई रोकी शके नहि, एने कोईनो भय होय नहि.
आ रीते आत्माने साधनारा साधको बहादूर होय छे, पुरुषार्थवंत होय छे, पोतानी
अचिंत्यशक्तिनो तेने भरोसो छे, तेथी ते निःशंक अने निर्भय छे.
–विशेष आवता अंके
तने शरम नथी आवती ?
अरे, चैतन्यप्रभु! तारी शक्तिना एक टंकारे तुं
केवळज्ञान ले...एवी तारी ताकात...ने तंुं कहे छे के मने
मारुं स्वरूप न समजाय....एम कहेतां तने शरम नथी
आवती? भव करतां तने शरम नथी आवती?–ने
भवना अभावनी वात सांभळतां तने थाक लागे छे?
अरे, साधक दशाना तारा एक विकल्पनी एटली ताकात
के ईन्द्रना ईन्द्रासननेय एकवार तो डोलावी द्ये....
जन्मतां वेंत त्रणलोकने क्षणभर तो खळभळावी नांखे,
आटली तो जेना एक विकल्पनी ताकात...तेना आखा
पवित्र स्वभावनी केटली ताकात? आवी ताकातवाळो तुं
कहे के मने मारुं स्वरूप न समजाय !....एमां तने शरम
नथी आवती?