Atmadharma magazine - Ank 256
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : : महा :
आ मासनी विविध वानगी
(चर्चा अने प्रवचनो उपरथी : पोष मास)
ओ.....ळ.....खा.....ण
भाई, जगत साथेनी ओळखाण तने आत्मामां काम नहि आवे; आत्मानी
ओळखाण ज तने काम आवशे, माटे एनी ओळखाण कर. अमारे दुनियाना मोटामोटा
माणसो साथे नजीकनी ओळखाण–पिछाण छे–एम मानीने संतुष्ट थई जाय ने
आत्माने भूली जाय,–पण भाई, दुनियामां सौथी मोटो आ आत्मा....ए मोटा पुरुषनी
ओळखाण वगर दुनियानी ओळखाण तने क्यांय शरणरूप थवानी नथी. खरो
शरणरूप आत्मा छे–तेनी ओळखाण कर.
ध्यान
* निजस्वरूप उपर मीट मांड के एक क्षणमां मोक्ष.
* आवा निजस्वरूपना ध्याननो अभ्यास हंमेश कर्तव्य छे.
* हे मोक्षार्थी! बीजा घणा बाह्य पदार्थोथी तारे शुं प्रयोजन छे? आ चैतन्य–
परमात्मानुं ज तुं ध्यान कर.
* चैतन्यनुं वीतरागी ध्यान ज मोक्षनुं कारण छे, बीजुं कोई मोक्षनुं कारण नथी.
सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र ए त्रणे शुद्धात्माना ध्यानरूप छे.
आनंदनो मार्ग पण आनंदरूप छे.
मोक्ष परम आनंदधाम छे. एनो मार्ग पण आनंदधाममां ज छे. राग तो
आकुळतानुं धाम छे, ते कांई आनंदनुं धाम नथी, तेथी तेमां मोक्षमार्ग नथी. जेम मोक्ष
आनंदस्वरूप छे तेम तेनो मार्ग पण आनंदस्वरूप छे; एमां आकुळतानुं स्थान नथी,
एमां रागनुं स्थान नथी. राग रागमां रह्यो पण मोक्षमार्गमां नथी. जे भाव
मोक्षमार्गरूप छे तेमां रागनो अभाव छे.
म...ह....त्त्व...नुं
शुद्धस्वभावने भूलीने रागने–व्यवहारने धर्म माननारा जीवो निश्चय–व्यवहार
बंनेने भूली रह्या छे; तेओ व्यवहारोने तो तेनी मर्यादा करतां वधु महत्त्व आपे छे ने
निश्चयनुं जे परम महत्त्व छे तेने भूली जाय छे.