: महा : : १७ :
आत्मध्यान
अंतर्मुहूर्त पहेलां चोथा गुणस्थाने होय ने अंतर्मुहूर्तमां सिद्धालयमां पहोंची
जाय, एवुं घणा जीवोने बने छे. प्रथमना १६ तीर्थंकरोनी तीर्थंकरपणानी उत्पत्तिना
प्रथम ज दिवसे अमुक जीवो अंतर्मुहूर्तमां ज चारित्र अने केवळज्ञान पामीने मोक्षदशा
पाम्या....आवुं चैतन्यध्याननुं अगाध सामर्थ्य छे. माटे हे जीव! तुं पण आवा
आत्मध्यानमां तत्पर था.
जडवादी
ईन्द्रियज्ञानथी आत्मा जणाई जशे एम जे माने छे ते आत्माने जड माने छे,
केमके ईन्द्रियज्ञानथी जे जणाय ते तो रूपी अने जड होय. राग ए पण ईन्द्रियज्ञाननी
ज जात छे; ते रागवडे आत्मा जणाशे एम माननार पण खरेखर आत्माने जड माने
छे; जडथी भिन्न आत्माने ते जाणतो नथी.
चैतन्यमूर्ति अरूपी आत्मा तो ईन्द्रियातीत ज्ञाननो विषय छे, रागथी पार छे.
अचिंत्य आत्मस्वभावने जाणनार ज्ञान पण अचिंत्य थई गयुं छे.
ज्ञाता बधायनो, पण ज्ञेय थोडानो
आत्मा बधा द्रव्योनो ज्ञाता छे, परंतु आत्मा बधा द्रव्योनुं ज्ञेय नथी. जड–
चेतन बधा पदार्थोने आत्मा जाणे छे तेथी ज्ञाता तो बधा द्रव्योनो छे; परंतु सामा
चेतन पदार्थोनो ज आत्मा ज्ञेय थाय, अचेतन पदार्थोनो ज्ञेय आत्मा थतो नथी, केमके
अचेतन पदार्थोमां ज्ञान नथी.
ज्ञाता एक, ज्ञेय बधाय
ज्ञेय तो छए द्रव्यो छे पण ज्ञाता एकलुं आत्मद्रव्य ज छे. छए द्रव्योमां
ज्ञातापणुं एक जीवमां ज छे, ज्ञेयपणुं छएमां छे. एटले आत्मा बधा पदार्थोने जाणे छे,
पण बधा पदार्थो कांई आत्माने नथी जाणता. आ रीते ज्ञायकपणानी विशिष्टशक्ति
आत्मामां ज छे.
जिज्ञासवृत्ति
हुं आत्माने जाणुं–जाणुं एवी जे जिज्ञासावृत्तिनुं उत्थान तेनाथी आत्मा
अनुभवमां आवतो नथी. ज्यारे आत्मा अंतरमां एकाग्र थईने निरालंबीपणे पोते
पोताने जाणे अनुभवे त्यारे ए जिज्ञासावृत्तिनुं उत्थान मटी जाय छे. जिज्ञासवृत्ति होय
पण ते वृत्तिमां ज अटकी रहे तो आत्मा जणातो नथी, केमके वृत्तिना अवलंबनथी ज
आत्मा जणाई जतो नथी; ते वृत्तिना अवलंबनथी आघो खसी, ज्ञानने निरालंबी
करीने अंतरमां वाळे त्यारे ज आत्मा स्वानुभवथी जाणवामां आवे छे. अरे
जिज्ञासावृत्तिनुंय ज्यां आलंबन नथी त्यां बीजा रागनुं के बहारना निमित्तोनुं
आलंबन कयांथी होय?