Atmadharma magazine - Ank 256
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : : महा :
हे जीव! स्वानुभूतिथी तारा ज्ञान–दर्शन–
आनंद स्वरूप आत्माने तुं जाण. स्वानुभूतिगम्य
तारो आत्मा जगतना पदार्थोथी जुदो छे ने समस्त
परभावोथी पण जुदो छे. स्वानुभूतिमां जे तत्त्व
आव्युं ते ज तुं छो. अभेदरत्नत्रयपरिणत जीवने
निर्विकल्पसमाधिमां जे परमतत्त्व आनंदसहित
अनुभवाय छे, ते ज आत्मा छे. आवा परम तत्त्वने
आ परमात्म–प्रकाशनां प्रवचनो प्रगट देखाडे छे.
(परमात्मप्रकाशना प्रवचनोमांथी : पोष मास)
आत्मानुं स्वरूप शुं छे के जेना अनुभवथी दुःख टळे ने सुखनो अनुभव थाय!
आम जेने जिज्ञासा थई छे तेने आत्मस्वरूप समजाववा आ उपदेश छे. आ
चैतन्यस्वरूप आत्मा छे ते देहातीत छे. तेने देह नथी, देहसंंबंधी स्त्री–पुत्रादि तेने नथी,
बंधु–बांधव तेने नथी, रोग तेने नथी, लक्ष्मी वगेरे तेने नथी, काळो–धोळो–रातो वगेरे
रंग तेने नथी, मनुष्यपणुं वगेरे चारगति तेने नथी; क्षत्रिय–वणिक–ब्राह्मण वगेरे जाति
तेने नथी, धनवानपणुं के दरिद्रपणुं तेने नथी; दिगंबर–श्वेतांबर वगेरे लिंगो तेने नथी;
पंडितपणुं, मूर्खपणुं, शिष्यपणुं, गुरुपणुं वगेरे पण तेना स्वभावमां नथी. भाई, अन्य
समस्त द्रव्यो तो तुं नथी, ने अंदर पुण्य–पापना विकृतभावो ते पण तुं नथी.
–तो पछी आत्मा केवो छे?
आत्मा तो ज्ञान छे, आत्मा दर्शन छे, आत्मा संयम छे, आत्मा आनंद छे.
अथवा अभेद रत्नत्रयपरिणत जीवने निर्विकल्प समाधिमां जे परम तत्त्व आनंदसहित
अनुभवाय छे ते ज आत्मा छे. स्वानुभूतिमां जेटलुं तत्त्व आव्युं तेटलो ज आत्मा छे.
परम स्वभावी आ आत्मा निर्विकल्प अनुभवमां प्रगट थाय छे. ए सिवाय बीजा कोई
परद्रव्यमां के परभावमां आ परमस्वभावी परमात्मा प्रगटतो नथी.
पोताने जे देहादिथी भिन्न नथी जाणतो ते बीजाने पण देह–लक्ष्मी वगेरेथी मोटा
माने छे, ने तेनो प्रेम करे छे; आ बहिरात्मानां लक्षण छे. भाई, ज्ञानमां–श्रद्धामां–
चारित्रमां जे अधिक होय तेनो महिमा तने न आव्यो ने लक्ष्मी वगेरेमां अधिकनो
महिमा तने आव्यो तो तें आत्माने लक्ष्मीवाळो–जड मान्यो छे, ज्ञानस्वरूप आत्माने तें
जाण्यो नथी. रागथी ने पुण्यथी पण आत्मानी