Atmadharma magazine - Ank 256
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: महा : : १९ :
मोटाई नथी, त्यां बहारना पदार्थो तो कयांय दूर रह्या. स्वानुभूतिथी तारा ज्ञान–दर्शन–
आनंदस्वरूप आत्माने तुं जाण. आ रीते स्वानुभवथी आत्माने जाणनारा अंतरात्मा
पोताना स्वभाव सिवाय बीजे कयांय पण पोताना आत्माने जोडता नथी, अथवा
बीजे कयांय ‘आ हुं छुं’ एवी आत्मबुद्धि तेमने थती नथी; चैतन्यस्वभावपणे ज
पोताना आत्माने भावे छे–अनुभवे छे.
चेतनभाव ज आत्मा छे, चेतनभाव सिवाय बीजा कोई पुण्य–पाप वगेरे भावो
आत्मा नथी. चेतनरुप अनूप अमूरत.... आत्मा सदाय चेतनस्वरूप छे; उपयोगरूप
शुद्धभावमां ज आत्मा छे, विकारमां आत्मा नथी. धर्मी पोताना आत्माने उपयोगस्वरूप
ज अनुभवे छे, ए अनुभवमां राग नथी, राग अने पुण्य–पाप तो अनुभवथी बहार
जुदा ज छे. जगतथी जुदो आवो आत्मा स्वानुभूतिथी ज गम्य थाय तेवो छे.
स्वसंवेदनज्ञानथी धर्मी जाणे छे के मारो आत्मा ज्ञान–दर्शन–संयमरूप छे, मारो
आत्मा मोक्षस्वरूप छे. विकारस्वरूप मारो आत्मा नथी, कर्मबंधवाळो मारो आत्मा
नथी. दर्शन–ज्ञान चारित्र–मोक्ष वगेरे निर्मळभावो मारो आत्मा ज छे, मारा आत्माथी
बहार कयांय मारा दर्शन–ज्ञान–चारित्र नथी. मारा दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां मारो
शुद्धआत्मा ज छे, मारा दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां राग नथी, ने रागमां मारा दर्शन–ज्ञान–
चारित्र नथी. आवा आत्माने धर्मी अनुभवे छे. आ रीते श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र ने
मोक्षसुखरूप निर्मळभावे परिणमतो शुद्धआत्मा ज उपादेय छे. दर्शन–ज्ञान–चारित्र
संबंधी जे विकल्प छे ते शुद्धात्माथी बाह्य छे; विकल्प ते आत्मानुं अंतरनुं अंग नथी
पण बर्हिअंग छे; शुद्ध चैतन्यथी ए विकल्पनी जात जुदी छे. जो के शुद्ध परिणति साथे
सहकारीपणे जे शुभविकल्पो अने तेनुं फळ छे ते पण लोकोत्तर होय छे, बीजा करतां
ऊंचा प्रकारना होय छे; छतां शुद्धपरिणतिथी तो ते बाह्य ज छे. शुद्धपरिणति तो
निश्चयथी आत्मा छे, विकल्प अने पुण्य ते निश्चयथी आत्मा नथी.
निश्चय सम्यग्दर्शन वगर जे मोक्षमार्गनुं अस्तित्व माने तेने जैनधर्मना मार्गनी
खबर नथी. निश्चय सम्यकत्वादि आठमा गुणस्थानथी होय ने नीचे न होय–एम कोई
कहे, एनो अर्थ ए थयो के, कां तो आठमाथी नीचेनां गुणस्थाने मोक्षमार्ग ज नथी,
अथवा तो निश्चय सम्यकत्वादि वगर ज मोक्षमार्ग छे. परंतु ते बंने वात खोटी छे.
मोक्षमार्गनी शरूआत चोथा गुणस्थानथी ज थई जाय छे, अने चोथा गुणस्थानथी ज
निश्चय सम्यकत्व होय छे. ज्यां निश्चय सम्यकत्व न होय त्यां मोक्षमार्गनी शरूआत होई
शके नहि. अने जो चोथा–पांचमा गुणस्थाने निश्चय न होय तो शुं त्यां एकान्त
व्यवहार छे? एकान्त व्यवहार ए तो मिथ्या ज छे. माटे निश्चय सम्यग्दर्शनपूर्वक एटले
के स्वानुभव सहित शुद्धात्मानी प्रतीतपूर्वक ज मोक्षमार्ग थाय छे, एनाथी ज
अंतरात्मपणुं प्रगटे छे. ज्यां सुधी