Atmadharma magazine - Ank 256
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २० : : महा :
जीवने आवुं निश्चय सम्यकत्व न होय त्यां सुधी ते बहिरात्मा छे. अने चोथा गुणस्थाने
निश्चय सम्यकत्व जे न माने ते पण एकान्त व्यवहारमां लीन बहिरात्मा ज छे–एम जाणवुं.
अरे, स्वानुभूति शुं अने सम्यग्दर्शन शुं तेनुं स्वरूप समजवुं पण अत्यारे
घणाने दुर्लभ थई गयुं छे. मोक्षमार्गने माटे आ एक सिद्धांत छे के, मोक्षमार्ग आत्माना
आश्रये छे, एटले आत्मारूप जे भाव थयो होय ते ज भाव मोक्षमार्ग छे. हवे
आत्मानो स्वभाव श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र छे, ते स्वभावरूप थयेलो भाव (एटले के
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप थयेलो निर्मळभाव) ते ज मोक्षमार्ग छे; पण तेनाथी
विरुद्ध मिथ्यात्वादि मलिनभावो ते मार्ग नथी; जेम मिथ्यात्व ते मार्ग नथी, अज्ञान ते
मार्ग नथी तेम राग ते पण मार्ग नथी. केमके ते भावो आत्माना स्वभावरूप नथी, ते
खरेखर आत्मारूप नथी पण अनात्मारूप छे. आत्माना स्वभावनी साथे जेनी जात
मळे नहि ते मोक्षमार्ग केम होय? आत्माने साधे ते परिणाम आत्मारूप होय,
अनात्मारूप न होय. आ रीते शुद्धआत्मा ज मोक्षमार्गमां उपादेय छे. शुद्धआत्माने
उपादेय करनार ज मोक्षने साधे छे, बीजा कोई मोक्षने साधता नथी. रागनो आदर
करनार कदी मोक्षने साधी शकता नथी. मोक्ष परम आनंद धाम छे. एनो मार्ग पण
आनंदधाममां ज छे. राग तो आकुळतानुं धाम छे. ते कांई आनंदनुं धाम नथी, तेथी
तेमां मोक्षमार्ग नथी. मोक्ष आनंदस्वरूप अने तेनो मार्ग पण आनंदस्वरूप छे; एमां
आकुळतानुं स्थान नथी, एमां रागनुं स्थान नथी. राग रागमां रह्यो पण मोक्षमार्गमां
नथी. जे भाव मोक्षमार्गरूप छे तेमां रागनो अभाव छे,
शुद्धस्वभावने भूलीने रागने धर्म माननारा जीवो निश्चय व्यवहार बंनेने भूली
रह्या छे; तेओ व्यवहारने तो तेनी मर्यादा करतां वधु महत्त्व आपे छे ने निश्चयनुं जे
परम महत्त्व छे तेने भूली जाय छे.
आ चैतन्यस्वरूप आत्मा पोते ज पोतानो देव छे, तेनी आराधनाथी ज संसार
तराय छे तेथी ते ज परमार्थ तीर्थ छे, ते ज गुरु छे ने ते ज देव छे, ते ज सेववायोग्य
छे ने ते ज आराधवायोग्य छे. आवा स्वद्रव्यनी ज तुं आराधना कर एवो उपदेश छे.
बहारना देव–गुरु ने सम्मेदशिखरजी वगेरे महा तीर्थ तेनी भक्ति–उपासना ते व्यवहार
छे, ते शुभराग छे, ने अंदरमां पोताना चिदानंदस्वभावनी ज देव–गुरु ने तीर्थपणे
उपासना ते निश्चय छे. वीतराग–निर्विकल्प दशामां तो स्वशुद्धात्मा ज एक परम
आदरणीय छे; सविकल्पकाळे, वीतरागीसर्वज्ञदेव, निर्ग्रंथ मुनिराज गुरु अने
सिद्धक्षेत्रादिक तीर्थो ते आराधनायोग्य छे, एवो व्यवहार छे.
जे व्यवहार देव–गुरु–तीर्थनी आराधना छे ते पुण्यास्रव सहित छे; ने शुद्धात्मानी जे
निश्चय आराधना छे ते आस्रवरहित छे, ते साक्षात् मोक्षनुं कारण छे पोताना
शुद्धस्वात्मतीर्थ करतां बीजुं कोई मोटुं तीर्थ नथी. जगतमां बीजा जे तीर्थो बन्या (गीरनार