Atmadharma magazine - Ank 257
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : आत्मधर्म : 7A :
वांचीने पं. बनारसीदासजी पण प्रभावित थया हता; तेओ लखे छे के–
पांडे राजमल्ल जिनधर्मी समयसार–नाटकके मर्मी।
तिन्हें ग्रन्थकी टीका कीन्हीं बालबोध सुगम करि दोन्ही।।
आ कळशटीकानी अध्यात्मशैलिथी प्रभावित थईने, बनारसीदासजी बीजा
अनेक साधर्मीओ साथे तेनी स्वाध्याय करता, अने तेना उपरथी तेमणे ‘समयसार
नाटक’ नी रचना करी छे. समयसार नाटक तो प्रसिद्ध हतुं पण आ कळशटीकानी
प्रसिद्धि ओछी हती, ते हवे प्रसिद्धिमां आवी छे.
मंगळाचरणरूपे ‘समयसार’ ने नमस्कार कर्या छे. जगतमां पदार्थो तो अनंत
छे, ने सौ पोतपोताना गुण–पर्यायना वैभवसहित बिराजमान छे, स्वाधीन छे, कोई
बीजाने आधीन नथी, तो पछी तेमां जीवपदार्थने ज सार केम कह्यो? तो कहे छे के
जीवमां बे विशेषणोनी विशेषता छे–एक तो शुद्धात्मपरिणमनरूप अतीन्द्रिय सुख
जीवने ज छे. जगतना बीजा कोई पदार्थमां ए सुख नथी, माटे जीव सारभूत छे. सार
कहो के सुख कहो, एवी सुखदशा जेने प्रगटी छे ते जीव जगतमां सारभूत छे, तेथी तेने
नमस्कार कर्या–एक तो आ सुखनी विशेषता. स्वानुभूत्या चकासते एम कहीने आ
अतीन्द्रिय सुखमय शुद्धात्मपरिणमन बताव्युं छे. एवा अतीन्द्रियसुखनी अनुभूतिना
परिणमनथी प्रकाशतो आत्मा सारभूत छे, तेने नमस्कार हो.
एक विशेषण तो स्वानुभूतिरूप अतीन्द्रिय–सुखनुं परिणमन छे ते बताव्युं.
बीजुं विशेषण ‘ज्ञान सामर्थ्यद्वारा बतावे छे. एक समयमां एक साथे समस्त पदार्थोने
प्रत्यक्ष जाणी ल्ये छे एवी ताकात आ शुद्ध आत्मामां ज खीली छे, जगतना बीजा कोई
पदार्थमां एवी ताकात नथी, तेथी जीवने सारपणुं छे, श्रेष्ठपणुं छे. तेथी आवो
शुद्धआत्मा सारभूत अने हितकारी होवाथी नमस्कार करवा योग्य छे.
सार एटले सारूं, हित, सुख, उत्तम, श्रेष्ठ. असार एटले अहित, दुःख;
आत्मा पोते स्वानुभूतिथी अतीन्द्रिय ज्ञान ने सुखरूपे परिणम्यो ते ज जगतमां
साररूप, हितरूप, सुखरूप छे, ते ज श्रेष्ठ अने वंदनीय छे; बहारना पदार्थोवडे आत्मानी
श्रेष्ठता नथी. ज्यां चैतन्य पोते स्वानुभवथी शोभी ऊठ्यो त्यां बीजी कई वस्तुथी तेनी
शोभा छे? जुओने, तीर्थंकरोनुं शरीर वस्त्र वगर ज केवुं शोभे छे!! एवुं पवित्र शरीर के
जोनारने तेमां पोताना सातभाव (आगला–पाछला) देखाय. तो आ चैतन्यदर्पणनुं दिव्य
चैतन्य तेज–जेमां जगतना समस्त पदार्थो एक साथे झळके ने जे अतीन्द्रयआनंदथी
स्वानुभूतिमां ज मग्न रहे. एवा चैतन्यसमयसार– शुद्धआत्मानी शोभानी शी वात?
माटे आवो चेतन्यपदार्थ आत्मा ज सर्व पदार्थोमां श्रेष्ठ–सारभूत छे.
जुओ, जगतमां छ द्रव्यो; तेमां पांच तो अजीव छे. ते अजीव पदार्थोमां ज्ञान
नथी, सुख पण नथी, ते अजीवने जाणतां जाणनारने पण सुख नथी. सुख तो
स्वानुभूतिमां छे. एकला परप्रकाशकपणामां सुख नथी. शुद्धजीव पोते सुख छे, ज्ञानरूप
छे, अने तेने जाणतां जाणनारने पण अतीन्द्रिय