Atmadharma magazine - Ank 257
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : फागण :
अ चिं त्य म हि मा वं त
आ त्म श क्ति
गत मागसर– पोष मासमां समयसारनी ४७ शक्तिओ उपर जे
भावभीनां प्रवचनो थया तेनो केटलोक सारभाग अहीं आपवामां आव्यो छे.
(गतांकथी चालु)
(३७) आखाय परिवारने आनंद थाय छे.
चैतन्यमां एक उत्तम–शुद्ध परिणति प्रगटतां आत्मानो आखोय परिवार
आनंदित थाय छे. जेम कुटुंबमां एक उत्तम पुत्रनो अवतार थतां आखोय परिवार
खुशी थाय छे तेम आत्मामां एक आनंदगुणनी उत्तम परिणतिनो अवतार थतां
अनंता गुणोनो आखोय परिवार आनंदमय थाय छे. अनंतगुणथी अभेदरूप वस्तु छे
तेनो दरेक गुण सर्वगुणोमां (–आखा द्रव्यमां) व्यापक छे. सुखगुण छे ते दुःखमां
व्यापक नथी, पण सुखगुण आखा आत्मामां व्यापक छे. दुःख ते खरेखर सुखशक्तिनुं
कार्य नथी, एटले खरेखर ते आत्मा ज नथी. आत्मा तो सुख शक्तिनो पिंड छे, ए तो
सुखनुं वेदन आपे; ए दुःखनुं वेदन केम आपे?
(३८) डबल अपराध
प्रभु कहे छे के: अमे परमेश्वर थईने कहीए छीए के परमेश्वरपणुं आत्मामां छे;
माटे तुं तारा परमेश्वरपदने देख. पोताना परमेश्वरपदने भूलीने जे विकार जेटलो
पोताने माने छे ते अपराधी छे; अने आवो अपराध पोते करवा छतां बीजा उपर ढोळे
के मने विकारकर्मे कराव्यो–तो ते डबल अपराधी छे. पोतानो अपराध बीजा उपर ढोळे
ते अपराध टाळशे क््यारे?
(३९) प्रभुनो प्रताप कोण झीली शके?
चैतन्यनी प्रभुता एवी महान छे के एना प्रतापने सम्यग्द्रष्टि ज झीली शके छे.
अज्ञानीनी द्रष्टि एवी नबळी छे के ए चैतन्यनी प्रभुताना तेजने झीली शकती नथी.
अहा, आवी अचिंत्य प्रभुता–जगतमां जेनो जोटो नहि,–एवी प्रभुतानो पिंड हुं ज छुं.–
आवी प्रतीत सम्यग्द्रष्टिने ज थाय छे, ए ज चैतन्यप्रभुना प्रतापने झीली शके छे.
रागमां एवी ताकात नथी के चैतन्यप्रभुना प्रतापने झीली शके. अहा, आवी प्रभुता
संतोए प्रगट करीने जगतने बतावी छे. ज्यारे ९०० वर्ष पहेलां अमृतचंद्रस्वामी
मुनिदशामां झूलता झूलता आवी