Atmadharma magazine - Ank 257
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : आत्मधर्म : ३ :
प्रभुताने प्रसिद्ध करता हशे ने भरतक्षेत्रमां विचरता हशे–त्यारे तो जाणे सिद्ध भगवान
उपरथी ऊतर्या! एवो एमनो देदार हशे.
(४०) सिद्ध प्रभुजी....आवो दिलमें......
शरूआतमां ज आत्माना आंगणे सिद्ध प्रभुने पधरावीने आ समयसार शरू
कर्युं छे. अमारा अने श्रोताना बधायना आत्मामां सिद्धप्रभुने बेसाडया छे....ज्यां सिद्ध
प्रभुने बेसाडया त्यां राग केम रही शके? माटे काढी नांख रागने लक्षमांथी, ने सिद्ध
जेवा स्वभावने लक्षमां ले. श्रोता पण एवो छे के आदरथी आ वात सांभळवा आव्यो
छे एटले आचार्यदेव जे वात समजावे छे ते आदरपूर्वक स्वीकारे छे. भाई, तारा
आंगणामां सिद्ध भगवानने पधराववा छे, तो ज्यां सिद्धभगवान पधारे ए आंगणुं
केवडुं होय? रागना टूंका आंगणामां सिद्धभगवान नहि रहे; माटे रागनुं लक्ष छोडी
चिदानंद स्वभावने लक्षमां लईने तारुं आंगणुं एवुं विशाळ कर के अहो! जेटली
सिद्धभगवाननी शक्ति एटली ज शक्ति मारा स्वभावमां. आम स्वभावनो उल्लास
लावी, ज्ञानने चोकखुं (राग वगरनुं) करीने तेमां तारा अंतरमां अनंता
सिद्धभगवंतोने पधराव. जे ज्ञान अनंत सिद्धोनो स्वीकार करीने परिणम्युं ते ज्ञान
सिद्धदशा तरफ परिणमे छे. जे श्रद्धाए अनंत सिद्धोनो स्वीकार कर्यो ते श्रद्धा पण
सिद्धपद तरफ परिणमवा मांडी; एणे आत्मामां सिद्धने स्थापी राख्या छे, एनो आत्मा
जागी ऊठ्यो छे, हवे ज्यां सिद्धपदनुं टाणुं आवशे के फडाक चैतन्यमां लीन थईने
सिद्धपद प्रगट करशे श्रद्धा–ज्ञानमां तो अत्यारथी लई लीधुं छे.
(४१) आत्मा जागी ऊठे छे
अहा, सिद्धपदनी आ वात सांभळता ज आत्मा जागी ऊठे छे. अरे, आठ
वर्षनी बालिका पण जागी ऊठे एवी आ वात छे. आचार्यदेवे समयसारनी शरूआत ज
कोई अलौकिक रीते करी छे. अरे, सिद्धपदने याद करीने तुं आ समयसार सांभळजे.
रागने भूली जा.....संसारने भूली जा....सिद्धपदने आत्मामां स्थापीने चाल्यो आव
सिद्धिना मार्गे! सिद्धने आत्मामां स्थापीने सिद्धपदने साधवा नीकळ्‌यो तेना मार्गमां
कोई विघ्न नथी. सिद्धने अंतरमां राखीने, अने सिद्धमां न होय एवा भावने
अंतरमांथी दूर करीने ते साधक निर्विघ्नपणे–अप्रतिहतपणे सिद्धपदने साधशे.
(४२) जेवी शक्ति तेवी ज तेनी व्यक्ति
सर्वज्ञता कहो के मोक्ष कहो, ए सर्वज्ञतानो कर्ता कोण? सर्वज्ञत्व शक्तिवाळो
खरेखर अल्पज्ञतानी कर्ता नथी, सर्वज्ञशक्ति तो सर्वज्ञतानी ज कर्ता छे. सर्वज्ञतानी
व्यक्ति ए ज सर्वज्ञत्व–शक्तिनुं खरूं कार्य छे. शक्तिनुं कार्य शक्तिथी विरुद्ध न होय. जे
पूर्ण पर्यायरूप व्यक्ति तेनुं कारण ते शक्ति ज छे, अथवा शक्ति साथे अभेद एवो
आत्मा ज कर्ता छे, अने ते कर्ताने सर्वज्ञतारूप कार्य करवाना कारको पण आत्मामां ज