: ४ : आत्मधर्म : फागण :
छे. एकेक शक्तिमां छए कारकनी स्वाधीनता छे.
(४३) ज्ञानस्वभाव
सामे लोकालोक छे तो अहीं सर्वज्ञता छे एम नथी. सर्वज्ञता छे ते पोताथी छे
अने ते आत्मज्ञानमयी छे; आत्मसन्मुख रहीने ते लोकालोकने जाणे छे. सर्वज्ञस्वभावी
आत्माना ज्ञानमां सर्वज्ञता खीली जाय छे; आत्मसन्मुखताथी सर्वज्ञता खीले छे,
परसन्मुखताथी सर्वज्ञता खीलती नथी. वळी ज्ञानमां कांई एवा बे भाग नथी के एक
भाग स्वने जाणे ने बीजो भाग परने जाणे. परने जाणे अने स्वने जाणे पण बंनेने
जाणनार ज्ञान तो एक ज छे, कांई बे ज्ञान जुदा नथी. एक ज ज्ञाननुं एवुं सामर्थ्य
खीली गयुं छे के स्वसन्मुख रहीने स्व–परने जाणे छे. स्वमां तन्मय रहीने ज्ञान स्व–
परने जाणे छे. ज्ञान स्वपणे रहीने परने जाणे छे, परने जाणतां कांई ते पररूप थई
जतुं नथी. परनुं ज्ञान ते कांई पर नथी ज्ञान तो स्व छे. एनो निर्णय करीने स्वसन्मुख
परिणमतां ज्ञाननो विकास सर्वज्ञतारूपे खीली जाय छे.
(४३) आत्मानुं खरूं काम–सर्वज्ञता ने वीतरागता
ए स्व–ज्ञाननो (–ज्ञानस्वभावी आत्मानो) निर्णय करीने ज्ञान ज्यां ज्ञानपणे
पोतामां ज रह्युं त्यां ते ज्ञानमां रागादि क््यां छे? ज्ञान ज्ञानमां स्थिर थतां वीतरागता
थई, ज्यां वीतरागता थई त्यां हवे बीजुं शुं करवानुं छे? लोकोने रागनां कार्य देखाय
छे, पण वीतरागता ए तो जाणे कांई कार्य ज न होय–एम अज्ञानीने लागे छे. भाई,
आत्माना हितने माटे करवायोग्य तो सर्वज्ञता ने वीतरागता छे. सर्वज्ञता ने
वीतरागता ए ज आत्मानुं खरूं कर्तव्य छे. चैतन्यमां सर्वज्ञता ने वीतरागता केम प्रगट
करवी तेनी रीत शास्त्रोए बतावी छे. चैतन्यशक्तिमां निधान अपार छे, तेनी कोई
मर्यादा नथी, एना सामर्थ्यनो पार नथी.
(४४) आश्चर्य उपजावे तेवी अनंतशक्ति
आश्चर्य उपजावे एवुं अचिंत्य सामर्थ्य एकेक शक्तिमां भर्युं छे, ने एवी
अनंतशक्ति आत्मामां छे. एटली बधी अनंत शक्तिओ छे के संख्याथी जेनी गणतरी
नथी, वचनथी जेनो पार नथी आवतो; असंख्य अबजो वर्षो सुधी कोई माणस के देव
झडपभेर एक–बे–त्रण–चार–पांच....एम गण्या करे तोपण आत्मानी अपार
शक्तिओनो अनंतमो भाग पण ते गणतरीमां आवी शके नहि; विकल्पथी पण एनो
पार न पमाय; पण अंतमुर्ख थईने अभेद आत्मानो ज्यां स्वानुभव करे त्यां ते
स्वानुभवमां अनंती शक्तिओ एक साथे समाई जाय छे. अनंती शक्तिओ एकरस
थईने एक क्षणमां अनुभवमां आवी जाय छे. ‘गणी गणाय नहि पण अनुभवमां
समाय’ एवी अनंतशक्तिनो पिंड आ आत्मा छे.
(४प) एक समयमां पूर्ण निधान
जेमांथी सर्वज्ञता–वीतरागता–आनंद–प्रभुता वगेरे प्रगटे एवा अपार निधान
चैतन्यशक्तिमां भर्या छे, अंतमुर्ख अवलोकनथी ते निधान