Atmadharma magazine - Ank 257
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 37

background image
: ६: आत्मधर्म :फागण:
तेना वडे शुद्धआत्मा साध्य एम बनतुं नथी केमके बंनेनी जात जुदी छे. विकार साधन अने
बंधन साध्य; निर्मळपर्याय साधन अने शुद्धात्मा साध्य–ए बंनेनी जात एक ज छे.
(४९) द्रव्य–गुण–पर्यायने क्षेत्रभेद नथी
आत्मद्रव्य, तेनो दरेक गुण अने तेनी प्रत्येक पर्याय–ए बधानुं क्षेत्र एक ज छे,
क्षेत्रथी जराय भेद नथी. काळथी द्रव्य अनादि अनंत, तेना गुणो अनादिअनंत, अने
पर्याय एक समयपूरती–एटलो भेद छे. पण निर्मळपर्याय ते ते काळे तो स्वभाव साथे
अभेद परिणमेली छे.
(प०) प्रत्यक्ष स्वसंवेदन ए ज मोक्षनो राह
आत्मामां स्वयं प्रकाशमान स्पष्ट स्वसंवेदनमयी शक्ति छे एटले आत्माना
स्वभावनुं स्वसंवेदन स्वयं पोताथी (–राग वगर विकल्प–वगर–ईन्द्रियो वगर)
अत्यंत स्पष्ट प्रकाशे छे. आवा आत्मस्वभावनुं माहात्म्य आवे तो ज तेमां अंर्तवलण
थाय ने तो ज मोक्षना राह प्रगटे. मोक्षना राह कहो के सुखना राह कहो, ते प्रगटवानुं
स्थान तो पोताना आत्मामां ज छे, आत्मानुं संवेदन राग वडे तो न थाय. ईन्द्रिय
तरफना परोक्षज्ञान वडे पण आत्मानुं संवेदन न थाय, आत्मानुं संवेदन तो प्रत्यक्ष–
स्वयं पोताथी ज अत्यंत स्पष्ट थाय छे. जुओ, आवुं स्वसंवेदन ते धर्म छे ने ते
मोक्षमार्ग छे; अने दरेक आत्मामां आवुं स्पष्ट–स्वसंवेदन करवानी ताकात छे.
स्वानुभूत्या चकासते एम कहो के ‘स्वयं प्रकाशमान’ कहो, स्वयं एटले पोतानी
स्वानुभूतिवडे आत्मा प्रकाशमान थाय छे, अनुभवमां आवे छे. रागना प्रकाशन वडे
चैतन्यनुं प्रकाशन थतुं नथी. चैतन्यनुं प्रकाशन चैतन्यनी पोतानी निर्मळ परिणति वडे
थाय छे, बहिर्मुख परिणतिवडे चैतन्यनुं प्रकाशन थाय नहीं. अहो, “स्वानुभूति” थी ज
आत्मानुं प्रकाशन कह्युं तेमां व्यवहारनुं अवलंबन कयां आव्युं? अरे, तारी
स्वानुभूतिमां तारे नथी जोईता अन्न ने पाणी, के नथी जोईता मन ने वाणी! के नथी
जोईता कोई विकल्प.–अन्न के मन, पाणी के वाणी–ए बधाथी पार एकला पोताना
आत्माथी ज पोतानो स्वानुभव थई शके छे अने ए ज मोक्षनो राह छे.
(प१) चारे गतिमां.....
आवी शक्ति चारे गतिना दरेक आत्मामां छे. पण एनी सन्मुख थाय एने ज
एनी व्यक्ति थाय छे. नरकनी घोर प्रतिकूळता वच्चे पडेलो जीव–ज्यां हजारोलाखो
वर्षो सुधी अन्ननो दाणो के पाणीनुं टीपुं मळतुं नथी, ज्यां छेदन भेदन–ठंडी–गरमी
वगेरे तीव्र यातनानो पार नथी त्यां ए प्रतिकूळतानी वच्चे पण कोई कोई जीवो
अंर्तस्वभावमां ऊतरीने स्वयं पोताथी पोताना स्वभावनुं स्पष्ट स्वसंवेदन करीने,
सम्यक्त्वप्रकाश प्रगट करे छे.–एवुं स्वसंवेदन करनारा असंख्याता जीवो नरकमां पण
छे. अहींनी प्रतिकूळता (मोंघवारी वगेरे) तो नरक पासे शुं हिसाबमां छे? त्यांनी
प्रतिकूळतानी अहीं कल्पना करवी पण मुश्केल छे; छतां त्यां सम्य–