Atmadharma magazine - Ank 257
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: फागण: आत्मधर्म :७:
कत्व पामे छे तोपछी अहीं केम न पामे? जागीने अंतरमां जुए तो जरूर पामे.
(प२) आत्मानी पुष्टि करनार स्वानुभवरूपी उत्तम माल
पोतानो प्रत्यक्ष स्वानुभव करवा माटे रागनुं अवलंबन ल्ये एवो आत्मानो
स्वभाव नथी; पण रागथी निरपेक्ष रहीने ज्ञान वडे पोते पोतानुं स्पष्टस्वसंवेदन करे
एवी आत्मानी शक्ति छे. परोक्षपणुं रहे के अस्पष्ट रहे–ए आत्मानो स्वभाव नथी,
अंदर ठेठ स्वभावमां ऊतरीने परोक्षनो पडदो तोडी नांखे, आत्माने छानो न रहेला द्ये,
पोते पोताने प्रत्यक्ष करे एवी स्वानुभवशक्ति आत्मामां छे. जुओ, आ तो
स्वानुभवनो अचिंत्य माल छे...सम्यग्द्रष्टि आवा स्वानुभवना खोराक वडे आत्माने
पुष्ट करे छे. ए स्वानुभवमां विकारनां वेदन नथी. एमां परना अवलंबन नथी, ए तो
स्वयं प्रकाशमान छे अने वळी स्पष्ट छे. चैतन्यने जोवामां आंखनो आधार नथी, एने
अनुभववामां मननुं अवलंबन नथी, ज्ञानपर्याय अंतरमां वळीने सीधी
ज्ञातास्वभावने अवलंबे–एमां आत्मानुं स्पष्ट प्रत्यक्ष स्वसंवेदन थाय छे, ए बीजा
बधायथी निरपेक्ष छे. आवो निरपेक्ष अनुभवमार्ग छे ए ज मोक्षमार्ग छे. ने ए ज
आत्मशक्तिनी पुष्टि करनार खरो माल छे.
(प३) गण्या गणाय नहीं अनुभवमां समाय
आत्मामां अनंत शक्तिओ छे.
वचनमां बधी शक्तिओ न आवी शके.
विकल्पमां बधी शक्तिओ न आवे.
स्वानुभूतिमां बधी शक्तिनुं वेदन समाई जाय छे.
गण्या गणाय नहीं, अनुभवमां समाय, एटला अनंतगुणो आत्मामां छे.
(प४) स्वानुभव निष्कलंक छे; राग कलंक छे.
स्वभावथी विरुद्ध भाववडे स्वभावनुं वेदन न थाय.
गुण–गुणीभेदना विकल्पमां एवी ताकात नथी के ते चैतन्यस्वभावने
स्वानुभवप्रत्यक्ष करी शके. अरे, चैतन्य भगवान राग वगरनो, अने रागवडे ए
स्वानुभव प्रत्यक्ष थाय एम कहेवुं ते तो एने कलंक लगाडवा जेवुं छे. रागना कलंक
वगरनो निष्कलंक चैतन्यस्वभाव ते रागना कलंक वडे अनुभवमां केम आवे? कलंक
वगरनो आत्मा ते रागना कलंकमां केम समाय? अने ए कलंक भगवान आत्माना
निष्कलंक स्वभावमां केम प्रवेशे? न ज प्रवेशे. एटले रागवडे–विकल्पवडे
चैतन्यस्वभावमां प्रवेशातुं नथी. स्वभावनुं स्वसंवेदन करनारो जे भाव छे ते
स्वभावनी जातनो छे. ने राग तो स्वभावथी विरुद्ध जातनो छे. स्वभावनी जातना
सम्यक् भाव वडे ज स्वभावनुं वेदन थाय छे, स्वभावथी विरुद्धभाव वडे स्वभावनुं
वेदन थतुं नथी. राग तो रंक छे, ने स्वभाव तो मोटो महिमावंत वीर छे, ए रंक राग
वडे मोटो महिमावंत स्वभाव अनुभवमां आवे नहि. ने ए महिमावंत मोटा
वीरस्वभावमां तूच्छ रंक रागनो प्रवेश थाय नहि. वीरतामां कायरता केम होय? तेम
चैतन्यनी वीरतामां रागनी कायरता केम होय?