: ८: आत्मधर्म :फागण:
धर्मात्माने चैतन्यनारंग चडया ते उतरे नहि; ए ठेठ केवळज्ञान लीधे छूटको.
एक समयनी पर्याय अनंतगुणना आखा पिंडने पोतानी प्रतीतमां–वेदनमां–
ज्ञानमां लई ल्ये एवी अचिंत्य अद्भुत ताकात छे.
(पप) कर्ताकर्मपणुं नथी–ज्ञाता ज्ञेयपणु छे
परना द्रव्य–गुण–पर्यायमां कांई करवानुं सामर्थ्य आत्मामां नथी, पण तेने
जाणवानुं सामर्थ्य आत्मामां छे. परनुं कर्तापणुं नथी पण ज्ञातापणुं छे.
परद्रव्यो तेमना पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायनां कारणो छे, पणे तेओ कांई आ
आत्माना द्रव्य–गुण–पर्यायनां कारणो नथी अने आ आत्मा तेमनां द्रव्य गुणपर्यायनुं
कारण नथी. ए वात अकार्य–अकारणत्वशक्तिए दर्शावी.
हवे अकार्य–अकारणपणुं होवा छतां परस्परज्ञाताज्ञेयपणुं छे, अर्थात् आत्मा
परद्रव्योने ज्ञेयपणे जाणे छे, तेमज सामा ज्ञाताजीवोना ज्ञानमां पोते प्रमेय तरीके
जणाय छे. –आवी ज्ञाता ज्ञेयपणानी शक्ति आत्मामां छे.
दरेक पदार्थ पोतपोताना आकारनुं एटले पोतपोताना द्रव्य–गुण–पर्यायनुं ज
कारण छे, बीजानुं कारण ते नथी ने तेनुं कारण बीजुं नथी.
कर्मनां रजकणो ते कर्मनां द्रव्य–गुण–पर्यायनुं कारण छे, पण जीवनां
द्रव्यगुणपर्यायनुं कारण ते नथी. जीवनां ते प्रमेय छे ने जीव तेनो ज्ञाता छे. शरीरनी
क्रियानो जीव ज्ञाता छे पण जीव तेनुं कारण नथी. शरीरनी क्रियामां जीवे शुं कर्युं?–कांई
न कर्युं, मात्र जाण्युं.
(प६) स्वसंवेदनमां मोक्षमार्गनो सम्यक् पुरुषार्थ
क्रम अने अक्रम बंने स्वभाव आत्मामां एक साथे छे. आवा आत्माने
स्वसंवेदनमां लेतां मोक्षमार्ग थाय छे, ते ज पुरुषार्थ छे.
एक श्रुतपर्यायमां स्वसंवेदनथी अनंत शक्तिवाळा आत्मानो निर्णय करवानी ताकात
छे. आत्मा केवो छे? के अनंत गुणो जेनामां अक्रमे छे, ने पर्यायो अक्रम होती नथी, ते
क्रमेक्रमे होय छे; आवा क्रम–अक्रम बंने स्वभावथी एकरूप आत्मा–तेने ज्यां स्वसंवेदनमां
लीधो त्यां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्गनो पुरुषार्थ स्वाश्रये शरू थयो.
सर्वज्ञना ज्ञाननो अने पदार्थना होनहारनो निर्णय करनार जे सम्यग्ज्ञान छे
तेमां परनुं अकर्तापणुं छे ने एकलो ज्ञानभाव ज रह्यो छे. एकलुं ज्ञातापणुं रह्युं ने
विकारनुं कर्तापणुं न रह्युं–ए ज सम्यक् उद्यम छे. वीर्यशक्ति पण आवी ज्ञानपर्यायने
रचे ए ज एनुं खरूं काम छे. द्रव्यनी वृत्ति एटले के द्रव्यनुं होवापणुं–द्रव्यनुं अस्तित्व–
उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप छे. उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप अस्तित्वमां क्रम अने अक्रम बंने भावो
आवी जाय छे. एनो निर्णय करनारुं जे सम्यग्ज्ञान छे ते ज्ञानमां शुद्धात्मानो सद्भाव
छे, ने तेमां विकारनो अभाव छे. हजी साधकदशा छे, ते साधक दशामां पण जे ज्ञान छे
ते ज्ञान निश्चयने