Atmadharma magazine - Ank 257
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: फागण: आत्मधर्म :९:
अवलंबनारुं छे, ने रागादि व्यवहारथी जुदुं छे. राग एना ज्ञेयपणे छे, पण राग तेना
कार्यपणे नथी.
(प७) निर्विकल्पता केम थाय?
क्रम–अक्रमरूप अनेकान्तमय वस्तुस्वरूपने जाणनारुं ज्ञान पोते पण
अनेकान्तमय छे. आवा वस्तुस्वरूपने निर्णयमां लेवो ते ज निर्विकल्पतानुं कारण छे.
यथार्थ आत्मस्वरूपने निर्णयमां ल्ये तो विकल्प तूटीने निर्विकल्प अनुभव थया विना
रहे नहीं. अहो, तारो अचिंत्यस्वभाव–जेमां विकार नहीं, ए स्वभावनो निर्णय करीने
स्वसन्मुख थनारुं ज्ञान रागथी जुदुं पडी जाय छे. माटे आवा स्वभावने निर्णयमां ले
तो तने निर्विकल्प अनुभूतिनो परम आनंद थशे.
(प८) आकाश करतांय मोटो
आकाशनी अनंततानुं सामर्थ्य केवुं अपार छे!! पण एना करतां य वधारे
अनंतगणुं सामर्थ्य आत्मानी एकेक शक्तिमां छे ने एवी अनंती शक्तिओ आत्मामां
छे. ए शक्तिमां निश्चय व्यवहारना खुलासा आवी जाय छे. शक्तिनी जे निर्मळ–
परिणति प्रगटी ते निश्चय छे, ने तेमां अशुद्धतारूप व्यवहारनो अभाव छे. अथवा
शक्तिने निश्चय कहो तो तेनी निर्मळ परिणति ते शुद्ध व्यवहार छे. आत्मानी शक्तिनुं
अने तेनी परिणतिनुं सामर्थ्य एटलुं महान छे के अपार आकाशने पण पोतामां
ज्ञेयपणे समावी दे छे. आ रीते भावसामर्थ्यथी आत्मा आकाश करतां य मोटो छे.
(प९) उपादान धु्रव अने क्षणिक बंने स्वभाववाळुं छे
उपादानमां धु्रवपणुं ने क्षणिकपणुं बंने छे. बंने थईने वस्तु छे. गुण अपेक्षाए
धु्रवता छे ने पर्यायअपेक्षाए क्षणिकता छे. आ रीते धु्रवता अने क्षणिकता बंने
आत्माना उपादानमां आवी गया. अने तेमां निमित्त पण यथायोग्य होय छे.
(६०) अनेकान्त
आ रीते वस्तुनी शक्तिओना निर्णयमां
निश्चय व्यवहारनो,
उपादान–निमित्तनो
० क्रमपर्याय अने अक्रमगुणनो
तथा अनेकान्तनो
ए बधायनो निर्णय पण आवी जाय छे. अने आवो निर्णय थतां ज्ञान, श्रद्धा
वगेरे गुणो पोतपोतानी वास्तविक (निर्मळ) परिणतिरूपे परिणमे छे, ते ज
अनेकान्तस्वरूप आत्मानुं खरुं परिणमन छे.
(६१) शक्तिनुं कार्य शक्तिनी जातनुं होय; चैतन्यचक्रवर्तीनी परिणति विकारी न होय
अज्ञानीने एकलुं विकार परिणमन छे, ते विकारने खरेखर शक्तिनुं कार्य कहेता
नथी. शक्तिनुं कार्य तो शक्तिनी जातनुं ज होय, एनाथी विरूद्ध केम होय? शक्तिना
आश्रये निर्मळपणे परिणमे–ते ज शक्तिनुं कार्य कहेवाय. जेम चक्रवर्तीनी पटराणी एवी न