तने न मळी. माटे जराक विचार.....ने ए तरफथी
पाछो वळ.... ज्ञानचक्षुथी एकवार आत्मा तरफ
जो....तो तने तत्क्षण अपूर्व सुख थशे.
जाणतो नथी? पैसा–कुटुंब वगेरे कोई परद्रव्य तने सुख तो आपता नथी, एने
पोताना मानवाथी तने मात्र दुःख ज मळे छे. अरे, तारो आत्मा पोते अतीन्द्रिय
सुखस्वरूप छे. आवा अतीन्द्रियसुखथी भरेला आत्मामां परद्रव्यनुं शुं प्रयोजन
छे? परद्रव्य तने क््यां शांति आपे छे? अरे, तारा आनंदस्वभावनी प्राप्तिमां
शरीर तने शुं कामनुं छे? पैसा तने शुं कामना छे? तुं परद्रव्यने पोतानुं मानीने
तेमांथी सुखनी आशा राखे छे ते तारी मूर्खता छे. ज्यां चैतन्यसुखने भूल्यो ने
लक्ष्मी–शरीर वगेरे बहारमां सुख मान्युं त्यां ते मूढ जीव ए परपदार्थोनी प्राप्ति
माटे अनेक प्रकारनां पाप, हिंसा–जुठुं–चोरी–काळाबजार वगेरे पापो करे छे. अरे,
दुःखनां कारणोने जीव सुखहेतु समजीने सेवी रह्यो छे....विषयो दुःखनां ज कारणो
छे छतां मूढ जीव तेमां सुखबुद्धिथी रमे छे, तेने ज सुखनां कारण समजीने सेवे छे.
आत्माना स्वभावनुं सेवन ते ज एक सुख छे. कोई पण परना सेवननी वृत्ति
ऊठी ते दुःख ज छे, परना सेवनमां सुख माने ते स्वद्रव्य तरफ क््यारे आवे?
परमां सुखनी नास्ति छे छतां त्यां सुखनुं अस्तित्व माने छे, ने आत्मा
सुखस्वभावथी भरेलो छे छतां तेने प्रतीतमां लेतो नथी. आ मूढ जीवनुं लक्षण छे.