Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : आत्मधर्म : ७ :
(६८) आत्माने मूर्त माने ते मूर्ख छे.
शरीरना संबंधथी आत्माने खरेखर मूर्त मानी ल्ये ते मूर्ख छे. अरे जीव! तारुं
अमूर्तपणुं छोडीने शरीरना संबंधे तुं मूर्त थवा गयो! शरीरना संयोग वच्चे रहेलो
आत्मा अत्यारे पण अमूर्त ज छे; एने मूर्त कह्यो ते तो उपचारथी ज कह्यो छे, खरेखर
ते मूर्त नथी. मूर्त तो शरीर ज छे. आत्मा तो सदाय उपयोगस्वरूप अमूर्त ज छे. आवा
आत्माने जे जाणे तेणे ज खरा आत्माने जाण्यो कहेवाय अंतमुर्ख जोनारने पोतानो
आत्मा अमूर्त ज भासे छे, मूर्तपणुं जराय भासतुं नथी. ज्यां कर्मनो संबंध ज नथी
भासतो त्यां वळी मूर्तपणुं केवुं? अरे, अनंत शक्तिवाळा आत्मस्वभावमां ज्यां
विकारीपणुं पण नथी त्यां वळी मूर्तिकपणुं केवुं? आत्माने मूर्त देखवो ए तो घणी स्थूल
द्रष्टि छे. आत्मामां अमूर्त शक्ति छे. तेना उत्पाद–व्यय कांई मूर्तरूप नथी. मूर्त तो जड
छे. आत्मा कांई जड नथी के ते मूर्त होय.
(६९) उत्पाद व्यय धु्रव प्रवचनसारना.....
ने उत्पाद व्ययधु्रव समयसारना.....
जगतना बधा द्रव्यो पोतपोताना स्वभावमां रहेला सत् छे; ने उत्पाद–व्यय–
धु्रवता ते सत्नो स्वभाव छे; ते स्वभावमां द्रव्य रहेलुं छे. आम बधा द्रव्योना सत्
स्वभावनुं वर्णन प्रवचनसार गा. ९९ वगेरेमां बताव्युं छे. त्यां तो निर्मळता के विकार
बधुं आत्माना सत् स्वभावमां समाय छे.
अने अहीं आत्मानी शक्तिओना वर्णनमां जे उत्पाद–व्यय–धु्रवत्व शक्ति
बतावी ते शक्तिना स्वभावमां तो एकली निर्मळता ज आवे. मलिनता तेमां न
आवे, त्यां परथी भिन्नता बतावी हती, अहीं विकारथी पण आत्मानी भिन्नता
बताववी छे.
जो के ९९मी गाथामां जे उत्पाद व्यय धु्रवरूप सत् स्वभाव बताव्यो ते
स्वभावनो जे निर्णय करे तेने तो सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्दर्शन थाय ज एटले के तेने
निर्मळ पर्याय तो शरू थई ज जाय; छतां जे विकारभाव होय ते पण आत्माना उत्पाद–
व्ययमां समाय छे, ते पण आत्माना सत्मां समाय छे, केम के त्यां प्रमाणना विषयरूप
द्रव्यनुं वर्णन छे.
अहीं साधकनी पर्यायमां जे विकार होय तेने स्वद्रव्यमां गणता नथी, तेने
अनात्मा गणीए छीए. निर्मळ शक्तिओ अने तेनुं निर्मळ परिणमन