Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : चैत्र :
ज्ञान अने राग बंने धारा धर्मीने वर्तती होवा छतां, तेने तन्मयपणुं एकमां ज छे, राग
तो मात्र परज्ञेयपणे वर्ते छे.
(६प) उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य स्वभाव
ध्रौव्यता अने क्षणिकता ए बंने, द्रव्यना स्वभावभूत छे. ध्रौव्य तेमज उत्पाद–
व्यय ए द्रव्यना स्वभावभूत ज छे, तो बीजो तेमां शुं करे? धु्रवता ते अक्रमरूप छे ने
उत्पाद–व्यय ते क्रमरूप छे. गुणो बधा एक साथे वर्ते छे ने एवा ने एवा धु्रव रहे छे,
एटले धु्रवता गुणअपेक्षाए छे ने उत्पाद–व्यय ते पर्यायअपेक्षाए छे, वस्तुनी बधी
पर्यायो एक साथे न ऊपजे पण क्रमेक्रमे ऊपजे, एवो ज वस्तुनो स्वभाव छे. पर्याय
ए पण वस्तुनो स्वभाव छे. वस्तुनुं वस्तुत्व परिणामद्वारा प्रगट थाय छे. उत्पाद–
व्यय–धु्रव त्रणेने द्रव्य स्पर्शे छे, पण परने द्रव्य स्पर्शतुं नथी. आम उत्पाद–व्यय ने धु्रव
त्रणेथी आलिंगित एवा स्वद्रव्यने लक्षमां लेतां सम्यग्दर्शनादि निर्मळपरिणामो प्रगटे
छे. अने आवा द्रव्यस्वभावने जोनारने ते स्वभावमां विकार भासतो नथी, एटले
विकारथी जुदो पडीने ते ज्ञाता–साक्षी–अकर्ता थयो. आवा निर्मळ ज्ञातापरिणाम ते धर्म छे.
(६६) सिद्धपद तरफ परिणतिनो प्रवाह
जे उत्पाद–व्यय–धु्रवता छे तेटलुं ज द्रव्यनुं अस्तित्व छे. आत्मानो स्वभाव सिद्ध
समान छे,–पण ते भास्यो कोने? के जेणे पोताना स्वभाव उपर द्रष्टि मूकी, अने
रागादिमांथी द्रष्टि हटावी, तेणे निर्मळ पर्यायवडे जाण्युं के मारो स्वभाव सिद्धसमान छे.
अने आ प्रकारे जेणे पोतानो स्वभाव स्वीकार्यो तेनी परिणतिनो प्रवाह सिद्धपद तरफ
वळ्‌यो, अथवा तेनी परिणतिनो प्रवाह स्वभाव तरफ वळ्‌यो. एनी परिणति हवे
स्वभावने ज स्पर्शे छे, परभावने एनी परिणति स्पर्शती नथी....संयोगनी भीड वच्चे
एनी परिणति भींसाती नथी, केमके संयोगने ते स्पर्शती ज नथी.
(६७) केवो आत्मा देखे तो आत्मा देख्यो कहेवाय?
ध्रुव ते त्रिकाळ छे ने पर्याय ते स्वकाळ छे. आवा धु्रव अने उत्पाद–व्यय वडे
प्रत्येक समये द्रव्यनुं अस्तित्व पूरुं छे. स्वभावभूत स्वअस्तित्वने एकलाने ज जुओ
तो विकार तेमां देखातो नथी, निर्मळ परिणमन सहित आत्मा ज देखाय छे. आवा
स्वभाववाळा आत्माने जे देखे तेणे ज आत्माने देख्यो कहेवाय. विकारवाळो ज आत्मा
माने तो तेणे उत्पाद–व्यय–धै्राव्यस्वभावी आत्माने देख्यो नथी, खरेखरा आत्माने तेणे
जाण्यो नथी पण अभूतार्थ आत्माने ज तेणे खरो आत्मा मानी लीधो छे. पण खरेखरो
ते नथी.