Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : आत्मधर्म : ५ :
अचिंत्य महिमावंत
आत्मशक्ति
गत मागसर–पोष मासमां समयसारनी
४७ शक्तिओ उपर जे भावभीनां
प्रवचनो थया तेनो केटलोक सारभाग अहीं आपवामां आव्यो छे.
लेखांक : ३ : गतांकथी चालु
(६३) जैनी–निती; अने अनीति
आत्मानुं मुख्य लक्षण ज्ञान छे; ए ज्ञानलक्ष्मीथी आत्मा शोभित छे.
ज्ञानलक्ष्मी अनंतशक्तिथी भरपूर छे. ज्ञान एकलुं ज प्रगट नथी थतुं, तेनी साथे
जीवत्व, प्रभुत्व, वीर्य, सुख, स्वच्छता, विभुता, विकास, सत्पणुं, उत्पाद–व्यय–
ध्रौव्यपणुं, अकर्तृत्व, स्व–कर्तृत्व वगेरे अनंतशक्तिओ पोतपोताना निर्मळभावो
सहित उल्लसे छे. आवा अनेकान्तमय ज्ञानस्वरूपे आत्माने ओळखवो ते
जैननीति छे. एनाथी विरुद्ध (एटले रागादि विकारवाळो) स्वभाव मानवो ते
अनीति छे. जैनी नीति कहो के मोक्षमार्ग कहो; अनीति कहो के मिथ्यात्व कहो के
संसारमार्ग कहो. विकारने आत्मानुं स्वरूप मानतां आत्माना गुणोनी निर्मळता
हणाय छे, ते हिंसा छे; ने ते हिंसामांथी आत्माने सम्यग्दर्शनादि वडे बचाववो,
तथा आत्मगुणोनी रक्षा करवी ते आत्मदया छे.–आवी दया ते धर्मका मूल है.
एटले सम्यक्त्वादि निर्मळपर्याय ते ज धर्म छे.
(६४) धर्मीने बे धारा.....पण तन्मयपणुं एकमां ज
धर्मीने स्व–पर प्रकाशक ज्ञान खील्युं, ते भूमिकामां साथे जे शुभाशुभ विकल्प
वर्तता होय ते विकल्पो ज्ञानना ज्ञेयपणे वर्ते छे, पण ज्ञानना कार्यपणे वर्तता नथी ज्ञान
तेना ज्ञातापणे वर्ते छे पण कर्तापणे वर्ततुं नथी. बंने पोतपोतानी धारामां जुदुं वर्ते छे.
ज्ञानभावमां धर्मी तन्मय वर्ते छे, रागादिभावमां तन्मय थतो नथी.