Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : चैत्र :
आत्मा छे. शुद्धनयना विषयरूप शुद्ध आत्माने ज अहीं आत्मा कह्यो छे, निर्मळ
परिणति पण तेमां भेगी समाय छे; पण विकार तेमां समातो नथी. शुद्ध द्रव्यमां
स्थापेली द्रष्टि वडे ते निर्मळभावपणे ज उपजे छे. विकारथी भिन्नपणे उपजे छे.
शुद्ध आत्मा विकारने स्पर्शतो नथी, ए तो पोताना निर्मळ उत्पाद व्यय धु्रवने
ज स्पर्शे छे.
प्रवचनसारमां जे उत्पाद व्यय धु्रव स्वभाव कह्यो तेमां तो उदयादि पांचे भावो
जीवमां समाय छे. अने अहीं ४७ शक्तिमां आत्मानो जे उत्पाद–व्यय–धु्रव स्वभाव
कह्यो तेमां उदयभाव न समाय, तेमां तो निर्मळभावो ज आवे.
(७०) आत्माने जाणनारुं ज्ञान ईन्द्रियातीत छे.
अमूर्त आत्मस्वभावने जाणे ते एकला ईन्द्रियज्ञानमां अटके नहि. केम के,
ईन्द्रिय– ज्ञाननो विषय तो मूर्त ज छे; अमूर्त आत्माने जाणनारुं ज्ञान तो ईन्द्रियातीत
छे; ईन्द्रियातीत थईने ज्यां स्वभावने पकडयो त्यां कर्मनो संबंध पण आत्मामां
भासतो नथी, एकला शुद्ध ज्ञानादि स्वभावनो पिंड ज भासे छे.
(७१) तने शरम नथी आवती?
अरे, चैतन्य प्रभु! तारी शक्तिना एक टंकारे तुं केवळज्ञान ले......एवी तारी
ताकात....ने तुं कहे के मने मारुं स्वरूप न समजाय....एम कहेतां तने शरम नथी
आवती? ने भवना अभावनी वात सांभळतां तने थाक लागे छे? अरे, साधक दशाना
तारा एक विकल्पनी एटली ताकात के ईन्द्रना ईन्द्रासननेय एकवार तो डोलावी
द्ये....जन्मतां वेंत त्रणलोकने क्षणभर तो खळभळावी नांखे.–जेना एक विकल्पनी
आटली ताकात, तेना आखा पवित्र स्वभावनी केटली ताकात? आवी ताकातवाळो तुं
कहे के मने मारुं स्वरूप न समजाय.....एमां तने शरम नथी आवती?
(७२) दरिया जेवो आत्मस्वभाव,
तेमा विकारना कर्तृत्वरूपी मेल समाय नहि,
अनंत शक्तिथी भरेलो आ चैतन्य दरियो....तेनामां एक एवी शक्ति छे के
ते निर्मळ परिणामने ज करे ने एनाथी विरुद्ध विकारपरिणामोनो अकर्ता रहे.
विकारनुं कर्ता– पणुं शक्तिना स्वभावमां नथी. शक्ति स्वभावथी जुओ तो
आत्मामां विकारनुं कर्तापणुं नथी. आवा स्वभावने द्रष्टिमां लेतां तेनी शक्तिओ
निर्मळ परिणमनना