Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : आत्मधर्म : ९ :
हीलोळे चडे छे. विकारना कर्तृत्वने पोतामां समावी शके एवो आत्मानो स्वभाव
ज नथी. जेम दरियानो स्वभाव ज एवो छे के मेलने पोतामां न शमावे, उछाळीने
बहार फेंकी द्ये; तेम आ चैतन्यसमुद्र ते विकाररूप मेलने पोतामां शमावा न द्ये;
ज्यां विकारनुंय कर्तृत्व आत्मामां नथी समातुं त्यां परना कर्तृत्वनी तो वात ज
क््यांथी होय?
(७३) जे आत्माथी भिन्न ते निषेधयोग्य
रागमां ज्ञानगुण नथी; जेमां ज्ञानगुण न होय तेने आत्मा केम कहेवाय? माटे
राग ते आत्मा नथी. आत्मानी शक्तिना निर्मळ परिणामथी रागना परिणाम जुदो छे.
आत्माथी जुदा कहो के निषेधवायोग्य कहो; मोक्षार्थीने जेम पराश्रित रागनो निषेध छे
तेम पराश्रित एवा सघळाय व्यवहारनो पण निषेध ज छे. राग अने व्यवहार बंने
एक ज कक्षामां छे, बंने पराश्रित होवाथी निषेधयोग्य छे; ने तेनाथी विभक्त चैतन्यनो
एकत्वस्वभाव ते ज परम आदरणीय छे.
(७४) अस्तित्व बेनुं,–आदरणीय एक
साधकभूमिकामां राग ने ज्ञान बंने एक समये छे तो पण रागपरिणामथी जुदुं
ज ज्ञानपरिणमन चाले छे, ने ज्ञानपरिणामथी रागपरिणाम जुदा ज छे. एक काळे बंने
होवा छतां बंनेने एकता नथी. धर्मीने ज्ञाननुं कर्तृत्व छे, रागनुं अकर्तृत्व छे.
ज्ञान ते आत्मा....राग ते आत्मा नहि;
आनंद ते आत्मा....दुःख ते आत्मा नहि.
निश्चय–व्यवहार एक साथे बंने भले हो, बंनेनुं विद्यमानपणुं होवा छतां,
साधकनी द्रष्टिमां, जे निश्चय छे ते ज खरो आत्मा छे ने जे व्यवहार छे ते खरो
आत्मा नथी. आवा आत्माना अवलंबने ज साधकपणुं थयुं छे, टकयुं छे, वधे छे,
ने पूर्ण थशे.
अरे, तारुं स्वतत्त्व केटलुं महान छे, ने केवुं चोकखुं छे, ते तो लक्षमां ले.
चक्रवर्तीओ मुनिओ ने तीर्थंकरो आदरथी जे मार्गने सेवे छे ते शुं रागवाळो हशे?
अरे, भाई आखा वीतरागताना पिंड शुद्धचैतन्यतत्त्वने ज ते सौ सेवी मोक्षने पामे
छे. अने तुं रागना सेवनवडे ते मार्गमां आववा मांगे छे? तने तीर्थंकरोना मार्गनी
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