
ज नथी. जेम दरियानो स्वभाव ज एवो छे के मेलने पोतामां न शमावे, उछाळीने
बहार फेंकी द्ये; तेम आ चैतन्यसमुद्र ते विकाररूप मेलने पोतामां शमावा न द्ये;
ज्यां विकारनुंय कर्तृत्व आत्मामां नथी समातुं त्यां परना कर्तृत्वनी तो वात ज
क््यांथी होय?
आत्माथी जुदा कहो के निषेधवायोग्य कहो; मोक्षार्थीने जेम पराश्रित रागनो निषेध छे
तेम पराश्रित एवा सघळाय व्यवहारनो पण निषेध ज छे. राग अने व्यवहार बंने
एक ज कक्षामां छे, बंने पराश्रित होवाथी निषेधयोग्य छे; ने तेनाथी विभक्त चैतन्यनो
एकत्वस्वभाव ते ज परम आदरणीय छे.
होवा छतां बंनेने एकता नथी. धर्मीने ज्ञाननुं कर्तृत्व छे, रागनुं अकर्तृत्व छे.
आनंद ते आत्मा....दुःख ते आत्मा नहि.
आत्मा नथी. आवा आत्माना अवलंबने ज साधकपणुं थयुं छे, टकयुं छे, वधे छे,
ने पूर्ण थशे.
अरे, भाई आखा वीतरागताना पिंड शुद्धचैतन्यतत्त्वने ज ते सौ सेवी मोक्षने पामे
छे. अने तुं रागना सेवनवडे ते मार्गमां आववा मांगे छे? तने तीर्थंकरोना मार्गनी
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