Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : चैत्र :
क््यां छे? रागमां तीर्थंकरोनो मार्ग नथी, निर्मळ पवित्र चैतन्यस्वभावमां ज
तीर्थंकरोनो मार्ग छे. रागना कर्तृत्वमां रमे–ते ‘आत्मा’ नहि, रागना कर्तृत्वथी उपशम
पामे ते ज ‘आत्मा’ छे, ने आवा आत्माने धर्मात्माओए सेव्यो छे. रागना
कर्तृत्ववाळा आत्माने सेवे ते खरेखरा आत्माने सेवतो नथी पण आस्रवने सेवे छे,
संसारने सेवे छे–अधर्मने सेवे छे; भगवानना कहेला मार्गने ते सेवतो नथी–जाणतोय
नथी.
पुण्य अने सम्यक्त्व

‘पुण्य’ अने ‘सम्यक्त्व’ वच्चे मोटो तफावत छे,–माटे
हे जीव! तुं सम्यक्त्वनी आराधना कर. पुण्य करतां
सम्यक्त्वनो कोई अचिंत्य महिमा छे. ते दर्शावतां श्री
निर्मल सम्यक्त्वाभिमुखानां मरणमपि भद्रं।
तेन बिना पुण्यमपि समीचीनं न भवति।।२,५८।।
जे णियदंसण–अभिमुहा सोक्खु अणंतु लहंति।
तं विणु पुण्णु करंता वि दुक्खु अणंतु सहंति।।२,५९।।
जे निर्मळ सम्यक्त्वनी अभिमुख छे. तेनुं तो
मरण पण भद्र छे–उत्तम छे; सम्यक्त्व वगर तो पुण्य
पण समीचीन नथी, सारूं नथी.
जे जीव निजदर्शननी सन्मुख छे एटले के
सम्यक्त्वनो आराधक छे ते तो अनंत सुख पामे छे;
अने तेना वगरनो जीव पुण्य करता छतां पण अनंत
दुःख सहे छे.
–परमात्मप्रकाश