Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 37

background image
: १२ : आत्मधर्म : चैत्र :
ते–स्वरूप आत्मा थई गयो नथी, एम शुद्धनयने जाणनारा योगीश्वरो कहे छे. आवा
आत्माने अंतरमां देखवो–अनुभववो ए ज सुखनो रस्तो छे; ए ज जिननो उपदेश छे.
सुखनो प्रवाह जेमांथी सतत वहे छे एवो सुखसमुद्र आत्मा छे, ने शुद्धोपयोग
वडे ते अनुभवमां आवे छे. आवो अनुभव जेने नथी एवो जीव शुभ अने अशुभरूपे
परिणमतो थको कर्मबंधनथी चार गतिमां रखडे छे. तो पण शुद्ध पारिणामिक
परमभावनी द्रष्टिथी जोईए तो आत्मा विकारनो कर्ता नथी, तेने कर्मबंध पण नथी,
अने कर्मथी छूटवारूप मोक्ष पण नथी. सदाय कर्मरहित शुद्ध ज छे–एवा स्वभावमां
बंधन–मोक्ष शुं? आवा स्वभावने ध्येयरूप बनावीने एकाग्र थतां पर्यायमां बंधन
टळीने मुक्ति थाय छे. जिनवचननो सार पण ए ज छे के जेनाथी बंधन टळे ने मुक्ति
थाय.
शुद्धात्मद्रष्टिमां तो आत्माने बंधन ज नथी एटले बंधनथी छूटवारूप मुक्त
थवानुं पण तेमां नथी. जेम जेलना बंधनथी पहेलां ज बंधायेलो होय ने छूटे तेने
मुक्त थयो कहेवाय; पण जे मनुष्य जेलमां गयो ज नथी, छूटो ज छे, तेने ‘तुं
जेलथी मुक्त थयो एम कहेवानुं रहेतुं नथी. तेम जीवने पर्यायमां बंधन छे एटले
सम्यग्दर्शनादि वडे पर्यायमां मुक्त थवानुं बने छे, पण शुद्ध द्रव्यस्वभावनी द्रष्टिमां
तो आत्मा कर्मने स्पर्श्यो ज नथी, तेने बंधन ज नथी एटले ‘आत्मा बंधनथी
मुक्त थयो’ एम कहेवानुं शुद्ध द्रव्यद्रष्टिमां बनतुं नथी. पर्यायमां बंध–मोक्ष छे तेनो
कर्ता आत्मा पोते छे. जे जीव शुद्धात्मानी अनुभूति नथी करतो ने अशुद्धात्माने ज
अनुभवे छे ते पोताना अशुद्धभावथी बंधाय छे, अने जे जीव शुद्धात्मानी
अनुभूति करे छे ते ज संवर–निर्जरा तथा मोक्ष पामे छे. आमां मोक्ष तो
क्षायकभावे छे, संवर–निर्जरा ते उपशम–क्षयोपशम के क्षायक भावे छे; शुभाशुभ
भावो तो उदयभाव रूप छे, ते कांई संवर–निर्जरा के मोक्षनुं कारण नथी, ते तो
बंधनुं ज कारण छे. शुद्ध द्रव्य तो परम पारिणामिभावरूप छे.
शुद्ध द्रव्यस्वभाव त्रिकाळ एकरूप छे; ते स्वभावमां ज जो बंधन होय तो बंधन
कदी छूटी न शके. तेमां बंधन नथी, एटले बंधन हतुं ने छूटयुं एवा पर्यायना जे प्रकारो
छे ते शुद्धस्वभावद्रष्टिमां देखाता नथी. पर्यायमां बंध–मोक्षनो कर्ता आत्मा छे. आम
द्रव्य अने पर्याय बे–रूप वस्तु छे. पर्याय सर्वथा न माने तो वस्तुनी खबर नथी,
पर्यायने ज आखी वस्तु मानी ल्ये तो तेने पण वस्तुनी खबर नथी. बंने जेम छे तेम
ओळखवा जोईए. बंनेने ओळखीने शुद्ध स्वभावने उपादेय करतां शुद्धता प्रगटी जाय
छे बंध–मोक्षभावनुं कर्तृत्व पर्यायमां छे, द्रव्यमां नहि