: चैत्र : आत्मधर्म : १प :
आनंद थशे. परना अवलोकनमां कांई सुख नथी. स्वने जाणतां ज्ञान ने सुख बंने साथे
थाय छे. परमां सुखनी कल्पना बंध करीने सुखना समुद्र एवा निजस्वरूपना
अवलोकनथी परम आनंदनो अनुभव कर अरे, ज्यां बाह्य ईन्द्रियो ज तारी नथी त्यां
ईन्द्रियविषयोमां सुखनी कल्पना तें क््यांथी ऊभी करी? अने अतीन्द्रिय स्वभावमां
ज्यां खरेखर सुख भर्युं छे तेने केम भूल्यो? निजस्वरूपने नीहाळवा हजारसूर्य जेवा
ज्ञानचक्षुने खोल. बहार ज अवलोकन करवानी टेव पडी गई छे ते टेव छोड, ने
अंतरस्वभावने जोवानो अभ्यास कर.
सम्यकत्व भावना
*शुद्धस्वरूपना निर्विकल्प अनुभवपूर्वकनी सम्यक्प्रतीतिरूप
सम्यग्दर्शननो अचिंत्य महिमा जिनवाणीमां अत्यंत प्रसिद्ध छे.
आठे कर्मोनो क्षय करवानी ताकात ते सम्यक्त्वपरिणमनमां छे–
एम कुंदकुंदस्वामीए कह्युं छे.
* ते सम्यग्दर्शन आत्माना बधा निजधर्मोनुं मूळ छे, ते मोक्षनुं
मूळ छे; जिनधर्मरूपी कल्पतरुनुं मूळ सम्यक्त्व छे.
* धर्मनगरमां प्रवेशवा माटेनो दरवाजो सम्यक्त्व छे.
* व्रत तप अने स्वरूपनी प्रतिष्ठा (शोभा) सम्यक्त्वथी छे.
* अनंत सुख देनार निधान सम्यक्त्व छे.
* आत्माना गुणनो आधार सम्यक्त्व छे.
*सकळ गुणोनुं धाम सम्यक्त्व छे.
सम्यक्त्वनो आवो महिमा जाणीने तेनी भावना वडे
स्वरूप–रस प्रगटे छे. हे जीव! परम कल्याणकारी एवा आ
सम्यक्त्वनी अत्यंत प्रेमपूर्वक तुं भावना कर.