Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : चैत्र :
निर्विकल्प अनुभव अहीं समयसारमां कह्यो छे तेवो निर्विकल्प अनुभव ते सिंह पामी
गयो. आवा तो असंख्याता तिर्यंचो निर्विकल्प अनुभवने पामेला, ने तेथी पण ऊंचे
पांचमी भूमिका पामेला छे. असंख्याता तिर्यंचो, असंख्याता देवो, असंख्याता नारकी
जीवो पण शुद्ध आत्मानो निर्विकल्पअनुभव पामेला छे.
केवो छे आ अनुभव?
पर सहायथी अत्यंत निरपेक्ष छे. पर कहेतां विकल्प, तेनी पण सहाय
स्वानुभवमां नथी. आवो अनुभव ते मोक्षमार्ग छे, ने रत्नत्रय तेमां समाय छे–
अनुभव चिंतामणिरतन,
अनुभव है रसकूप;
अनुभव मारग मोक्षका,
अनुभव मोक्षस्वरूप.
अहो, अनुभवमां तो अतीन्द्रिय अमृतनो दरियो छे. जेम चिंतामणि जे
चिंतवो ते आपे–शुं आपे?–बहारना पदार्थो; आ चैतन्यना अनुभवरूप चिंतामणि
एवो छे के तेने हाथमां लईने चिंतवतां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र–केवळज्ञान–मोक्ष
बधुंय आपे. ए अनुभव अमृतरसनो कुवो छे–के जेनो स्वाद चाखतां आत्मा अमर
थाय छे.–जगतना बधा स्वादथी अनुभवना अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद जुदो छे.
आवो स्वानुभव ते ज मोक्षनो मार्ग छे, ने ते पोते मोक्षस्वरूप छे. विकल्पो तो बधाय
अनुभवथी बाह्य छे, परवस्तु जेवा छे. आ स्वानुभवमां विकल्पनी के कोई बीजानी
अपेक्षा नथी, परथी ने विकल्पथी अत्यंत निरपेक्ष, परथी अत्यंत उदासीन आ
अनुभव प्रत्यक्ष ज्ञानगम्य छे. मतिश्रुतमांय स्वभावसन्मुखता वखते प्रत्यक्षपणुं
अतीन्द्रियपणुं छे. आवुं विशेषज्ञान ते अनुभव छे अने आवा अनुभव साथे
सम्यक्त्व सदा होय छे. सम्यग्द्रष्टिने ज आवो अनुभव होय, मिथ्याद्रष्टिने आवो
अनुभव होय नहि–ए नियम छे.
कोई कहे के निर्विकल्प अनुभव तो कदी थयो नथी पण सम्यक्त्व छे, तो तेम
बने नहि. आवो निर्विकल्प अनुभव थाय त्यारे ज सम्यक्त्व प्रगटे छे. आवा
अनुभववडे जीव वस्तु पोते पोताना शुद्धस्वरूपना स्वादने प्रत्यक्षपणे आस्वादे छे, ने
स्वरूपना आवा आस्वादपूर्वक तेनी ज प्रतीत थई ते ज सम्यग्दर्शन छे.
वळी कोई कहे के सम्यक्त्व नथी पण आत्मानो अनुभव क््यारेक क््यारेक थई
जाय