: चैत्र : आत्मधर्म : १९ :
छे,–तो तेनी वात खोटी छे. अनुभव कदी सम्यक्त्व विना होय नहि. विकार ते
जीववस्तुथी बाह्य छे. स्वानुभवमां जीववस्तु विकारथी भिन्न थईने पोताना
शुद्धस्वरूपने ज आस्वादे छे. अनुभव करनार पर्यायने जीववस्तु साथे अभेद करीने
कह्युं के जीववस्तु पोते अनुभवरसने आस्वादे छे. अनुभव टाणे द्रव्य–पर्यायना भेद
क््यां छे?
जेम सूर्यथी अंधारुं जुदुं, तेम चैतन्यना अनुभवथी विकल्प जुदो छे. चैतन्यनो
अनुभव तो सूर्य जेवो प्रकाशमान छे, ने विकल्प तो अंधकाररूप छे. आवो अनुभव ८
वर्षनी बाळिका पण करी शके छे, देडकुं पण करी शके छे; असंख्याता तिर्यंच नारकी ने
देवोने आवो अनुभव छे.
मति–श्रुतज्ञान परने जाणवामां परोक्ष छे; पण स्वसंवेदनना काळे तो ईंद्रिय
तथा मनथी छूटीने प्रत्यक्ष थया छे. अनुभवकाळे वचन नथी, विकल्प नथी. आवा
अनुभवमां जीवो तो प्रत्यक्ष अनुभवनशील छे, ने सर्वे विकल्पोनो क्षयकरणशील छे.
आम अस्ति– नास्ति बंने पडखां लीधा. ज्ञान आम अंतरमां वळ्युं त्यां ते जीव
स्वरूपनो अनुभवशील थयो, ने विकल्पो बधा बहार रही गया तेथी विकल्पनो
क्षयकरणशील थयो. अनुभवशील एटले शुद्धस्वरूपनो अनुभव करवानो ज जेनो
स्वभाव छे, ने क्षयकरणशील एटले सर्वे विभावोनो क्षय करवानो जेनो स्वभाव छे.–
आवी शुद्ध जीववस्तु छे. एक सूक्ष्म विकल्प मात्रना व्यवहारने पण अनुभवमां रहेवा
द्ये एवो जीवनो स्वभाव नथी, पण आखाय स्वभावने अनुभवमां ल्ये, ने सर्वे
परभावोने बहार काढी नांखे–एवो स्वभाव छे.
अरे, वीर थईने आत्मानो अनुभव करवा जे आव्यो तेनो पुरुषार्थ छूपे नहि.
सूरज ते कांई ढांक््या रहेता हशे! एम चैतन्यना अनुभवनो झगझगतो सूरज ज्यां
ऊग्यो एमां ते कांई विकल्पना अंधारा रहेता हशे? विकल्पने उपजावे एवो आत्मानो
स्वभाव नथी, पण सर्वे विकल्पोने क्षय करीने चैतन्यने साक्षात् अनुभवमां ल्ये एवो
स्वभाव छे. आवा स्वभावने अनुभवमां ल्ये त्यारे जीव धर्मी थाय.
जेम सूर्यनो स्वभाव अंधकारने तोडवानो छे, राखवानो नहि; तेम चैतन्यना
अनुभवरूप जे सूर्य तेनो स्वभाव विकल्पने तोडवानो छे, राखवानो नहि. वस्तु ज
एवा स्वभाववाळी छे के तेनी स्वानुभूति करतां ज स्वभावनो अनुभव करावे ने
विकारने क्षय करे. एटले कोई रागना अवलंबनद्वारा वस्तुनो अनुभव करवा मांगे तो
ते थई शके नहि. वस्तुना स्वभावमां जे नथी–तेना द्वारा वस्तुनो अनुभव केम थाय?
अने वस्तुस्वभावना अनुभव वडे जो विकारनो नाश न थाय तो विकारनो नाश
करवानो बीजो कोई उपाय रहेतो नथी वस्तुना अनुभवमां विकारनी उत्पत्ति थाय
नहि, जेम सूर्यमांथी अंधारुं उत्पन्न थाय नहीं.