Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : चैत्र :
वळी विशेषता ए छे के जेम सूर्यमां अंधारानो स्वभावथी ज अभाव छे, तेमां
अंधारुं छे ज नहि के जेने काढवुं पडे! तेम स्वानुभवरूप चैतन्यसूर्यमां विकल्परूप
अंधकारनो स्वभावथी ज अभाव छे, ते स्वानुभवकाळे विकल्प छे ज नहि के जेने नष्ट
करवो पडे, अनुभवनो भाव अने विकल्पनो भाव ए बंने जुदा छे; प्रकाशनो पूंज
सूरज ने अंधारुं तेने जेम कदी एकता नथी, तेम ज्ञाननो पूंज स्वानुभव अने
विकल्पनी आकुळता–ते बंनेने कदी एकता नथी. आवी निर्विकल्पतानो अनुभव
सम्यग्दर्शनमां चोथा गुणस्थानथी ज थाय छे.
प्रश्न:– स्वानुभवमां अबुद्धिपूर्वक विकल्प तो होय छे?
उत्तर:– ते विकल्प विकल्पमां छे, स्वानुभवनो जे भाव छे तेमां विकल्प नथी.
विकल्प अने स्वानुभव बंने चीज ज जुदी छे. स्वानुभवना काळे अबुद्धिपूर्वक विकल्प
छे ते खरुं, पण स्वानुभवना भावमां विकल्पनो भाव नथी. जेम जगतमां बीजे क््यांय
अंधारुं होय, ते कांई सूर्यमां नथी, सूर्यथी तो अंधारुं जुदुं ज छे, सूर्यमां अंधकार नथी,
तेम स्वानुभवमां विकल्प नथी.
अहीं प्रश्नकार कहे छे के–अनुभव थतां कोई विकल्प रहे छे? के जेनुं नाम विकल्प
छे ते बधाय मटी जाय छे? अबुद्धिपूर्वकना विकल्प तो अनुभवमां छे के नहि? के ते
पण छूटी गया छे.?
तेनो उत्तर आ प्रमाणे छे के–बधा ज विकल्पो मटी जाय छे, स्वानुभवमां एकेय
विकल्प रहेतो नथी.
भिन्न विकल्प अबुद्धिपूर्वक छे तेनुं पण अनुभवटाणे लक्ष नथी, उपयोग
अतीन्द्रिय– आनंदना वेदनमां ज लागेलो छे, ते वेदनमां कांई विकल्पनो प्रवेश नथी.
आनंदना वेदनमां विकल्पने देखे छे ज कोण? तेथी कह्युं के स्वानुभव टाणे बधा विकल्पो
क््यां गूम थई गया ते पण अमे जाणता नथी. स्वानुभव प्रगटतां ज्यां प्रमाण–नय–
निक्षेप पण जूठा (अभूतार्थ) छे त्यां रागादि विकल्पनी तो शी वात? प्रमाण–नय–
निक्षेपथी जे वस्तुस्वरूप नक्की कर्युं हतुं ते कांई जुठुं नथी, पण अनुभव पहेलां प्रमाण
वगेरेना जे विकल्पो हता ते हवे साक्षात् अनुभव टाणे छूटी गया, ते अपेक्षाए प्रमाण
वगेरे भेदोने जूठा एटले के अभूतार्थ कह्या व्यवहारने ‘अभूतार्थ’ बताव्या माटे
‘जूठो’ शब्द वापर्यो छे.
प्रमाण–नय–निक्षेप के जे प्रथम भूमिकामां स्वरूपनो निर्णय करवामां साधक
हता, ते विकल्पो पण अनुभवमां बाधक छे, त्यां रागनी तो शुं कथा? नय–प्रमाणादिना
विकल्पो होतां पण स्वानुभव नथी थतो, तो बीजा स्थूळ रागनी शी वात? ए तो