Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : चैत्र :
उपाय नथी. आ रीते प्रथम अवस्थामां ते विकल्प विद्यमान होवा छतां साक्षात्
स्वानुभव– काळे तो ते जूठा छे,–स्वानुभव वखते ते विकल्प होता नथी.
जीव अनादिथी अज्ञानी छे, ते ज्यारे वस्तुस्वरूपने साधवा मांगे त्यारे पहेलां
प्रमाण नय–निक्षेप वडे द्रव्य–गुण–पर्याय वगेरेनुं स्वरूप विचारे छे, गुण–गुणीभेदथी
वस्तुस्वरूप नक्की करे छे, एवो भेद आव्या वगर रहे नहि, एटलो विकल्प–व्यवहार
आवे छे खरो,–पण तेने ओळंगीने ज्यारे उपयोगने अंतरमां वाळे त्यारे
वस्तुस्वरूपनो साचो अनुभव थाय,–ते अनुभव टाणे पहेलांना कोई विकल्प रहेता
नथी. सूक्ष्ममां सूक्ष्म विकल्प पण ज्ञानथी भिन्न छे.–आवी भिन्नताना निर्णयमां पण
जेने भूल होय, एकबीजामां भेळसेळ करी देतो होय–तेने शुद्धवस्तुनो अनुभव थाय
नहि.
अहा, शुद्धवस्तुनो अनुभव बतावीने अमृतचंद्राचार्ये अमृत रेडयां छे. कलशमां
स्वानुभवना अमृत भर्यां छे. जेम तीर्थंकरदेवना जन्मकल्याणकमां १००८ कलशथी ईन्द्रो
अभिषेक करे छे तेम अमृतचंद्राचार्यदेवे अहीं २७८ कलशमां अमृत भरीभरीने आ
चैतन्य भगवान आत्मानो अभिषेक कर्यो छे. वाह! स्वानुभवना अमृतरसथी
आत्माने नवराव्यो छे. आत्माने शुद्धस्वरूपे अनुभवमां लईने आवा अनुभवरसनुं
पान करो.
जिनमार्ग
अत्यन्त सरल छे
सर्वज्ञ जिनेन्द्रोना मार्गनुं
अनुसरण करवाथी जीवनो उद्धार थाय
छे, ने ते जन्म–मरण रहित अमर पद
पामे छे. अने आ कांई किलष्ट मार्ग नथी
परंतु स्वाभाविक होवाने कारणे विवेकी
पुरुषोने माटे ते अत्यन्त सरल छे. हे
जीव! अंतरात्मा वडे तेनुं ग्रहण करीने तुं
सन्मार्गी था.