Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : चैत्र :
(१३प) दिनेदिने वृद्धिगत
बधी जगाएथी निवृत्त थईने आत्महित ना विचारमां रहेवुं अने आत्महित
तरफ परिणाम दिनेदिने वधारता जवा, पुरुषार्थ वगर एक पण दिवस न जाय ने शीघ्र
आत्महित सधाय–एम हे जीव! तुं कर.
(१३६) शांत परिणाम थाय त्यारे
जब अपनेमें शांत परिणाम होता है तभी ख्यालमें आता है कि भीतरमें
कितनी महिमा भरी हुई है! एकवार स्वका स्वाद चखें बादमें तो परिणति कहीं नहीं
घूम सकती.
(१३७) अतीव प्रयत्न करके
अतीव–अतीव प्रयत्न करके, सब जगहसे परिणाम हटाकर, स्वतत्त्वमें ही परिणाम
लानेका अभ्यास करनेकी आवश्यकता है. मात्र उसका प्रेम दीखानेसे उसकी प्राप्ति नहि हो
जायगी, किन्तु जब प्रेमकी पराकाष्टा होगी, एक उसके सिवाय अन्य सब जगहसे प्रेम हट
जायगा तभी परिणाम स्वमें आयगा और तभी स्वतत्त्वकी प्राप्ति होगी.
वैसा तो परिणाम भी वोही है, स्वतत्त्व भी वोही है, प्राप्त होनेवाला वोही है
और प्राप्त करनेवाला भी वोही है; किन्तु यह दशा ईतनी सहज है कि रागादिरूप
कृत्रिमता उसमें जरासी भी नहीं चल सकती. रागसे वह दशा अछूती है और उसी
दशाको हमें छूना है..... उसरूप होना है.
(१३८) परावलंबी मोक्षमार्ग नथी; मोक्षमार्ग स्वाश्रित छे
अरे जीव! तारी ज्ञानधारामां पण जेटलुं परावलंबीपणुं छे ते मोक्षनुं कारण
नथी, तो पछी सर्वथा परावलंबी एवो राग तो मोक्षनुं कारण क््यांथी थाय? माटे हे
जीव! स्वाश्रित भावने ज तुं मोक्षनुं कारण जाण.
पराश्रितभावोने आश्रये सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र मोक्षमार्ग मानवामां विरोध
आवे छे, केम के अज्ञानीनेय तेवा पराश्रित ज्ञानादि होवा छतां तेने मोक्षमार्ग नथी.
अने ज्ञानीने उपलीदशामां तेवा पराश्रिताभावो न होय तोपण मोक्षमार्ग होय छे. माटे
पराश्रितभावमां मोक्षमार्ग नथी. कदाचित् साधकने मोक्षमार्गनी साथे कंईक
पराश्रितभाव होय तोपण, ते पराश्रितभावना आश्रये कांई ते मोक्षमार्ग नथी;
मोक्षमार्ग तो शुद्ध आत्माना ज आश्रये छे.
शुद्धआत्मा ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनो आश्रय छे. ए एकान्त
(अबाधित) नियम छे. ज्यां शुद्धात्मानो आश्रय छे त्यां जरूर मोक्षमार्ग छे; ज्यां
शुद्धात्मानो आश्रय नथी त्यां मोक्षमार्ग नथी. आ रीते मोक्षमार्ग स्वाश्रित छे.