व्यवहाररत्नत्रय पण खरेखर मोक्षमार्गी जीवने ज होय छे; अज्ञानीने व्यवहाररत्नत्रय
पण साचां नथी होतां, व्यवहारश्रद्धा त्यारे साची कहेवाय के व्यवहारना अवलंबने
मोक्षमार्ग न माने; व्यवहारनुं अवलंबन ते मोक्षमार्ग नथी, एनुं अवलंबन छोडीने
परमार्थनुं अवलंबन करवुं ते ज मोक्षमार्ग छे, एम जाणे त्यारे तो व्यवहारश्रद्धा–ज्ञान
साचां कहेवाय. आ व्यवहारनो विकल्प छे ते मोक्षनुं साधन थशे एम माने तेने तो
व्यवहारश्रद्धा पण साची नथी.
पोते कांई मोक्षमार्गरूपे परिणमतो नथी.
सर्वज्ञनी प्रतीत भेगी होय ज, एटले आत्माना पूर्ण ज्ञानस्वभावनो तेमां स्वीकार
आवी जाय छे. अने ज्यारे अंतमुर्ख थईने निर्विकल्पपणे पोताना स्वभावने प्रतीतमां
ल्ये त्यारे निश्चय सम्यक्त्व छे, अने ते मोक्षमार्गरूप छे.