Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : आत्मधर्म : २प :
सुखी थवा शुं करवुं?
आत्मामां जवुं
भाई! परद्रव्यनो संबंध करवा जईश तेटलो दुःखी थईश. तारुं सुख तो
तारा स्वद्रव्यमां छे....माटे अनुभूति वडे स्वद्रव्यमां जा.....तो तने सुख थशे.
सुखनो पंथ कहो के मोक्षमार्ग कहो–ते स्वद्रव्यना अवलंबने छे;
निश्चयरत्नत्रयनी साथे साधकने व्यवहाररत्नत्रय पण होय छे. भेदरत्नत्रय अथवा
व्यवहाररत्नत्रय पण खरेखर मोक्षमार्गी जीवने ज होय छे; अज्ञानीने व्यवहाररत्नत्रय
पण साचां नथी होतां, व्यवहारश्रद्धा त्यारे साची कहेवाय के व्यवहारना अवलंबने
मोक्षमार्ग न माने; व्यवहारनुं अवलंबन ते मोक्षमार्ग नथी, एनुं अवलंबन छोडीने
परमार्थनुं अवलंबन करवुं ते ज मोक्षमार्ग छे, एम जाणे त्यारे तो व्यवहारश्रद्धा–ज्ञान
साचां कहेवाय. आ व्यवहारनो विकल्प छे ते मोक्षनुं साधन थशे एम माने तेने तो
व्यवहारश्रद्धा पण साची नथी.
परमार्थ–मोक्षमार्ग एकला शुद्धआत्माना अवलंबने छे. शुद्ध सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्ररूपे परिणमेलो आत्मा ते ज अभेदपणे मोक्षमार्ग छे. व्यवहाररत्नत्रयनो राग
पोते कांई मोक्षमार्गरूपे परिणमतो नथी.
छ द्रव्यनुं जे जाणपणुं छे तेने व्यवहारे सम्कत्वनुं कारण कह्युं छे. छ द्रव्यनुं
स्वरूप सर्वज्ञ सिवाय बीजाना मतमां वास्तविक होय नहि, एटले छ द्रव्यने जाणतां
सर्वज्ञनी प्रतीत भेगी होय ज, एटले आत्माना पूर्ण ज्ञानस्वभावनो तेमां स्वीकार
आवी जाय छे. अने ज्यारे अंतमुर्ख थईने निर्विकल्पपणे पोताना स्वभावने प्रतीतमां
ल्ये त्यारे निश्चय सम्यक्त्व छे, अने ते मोक्षमार्गरूप छे.