नीकळीने परद्रव्यनो जेटलो संबंध करीश तेटलुं दुःख तने थशे. परमांथी तने कांई मळशे
नहि, एनो संबंध करवा जईश तेटलो दुःखी थईश. तारुं सुख तो तारा स्वद्रव्यमां ज
भर्युं छे, माटे ते स्वद्रव्यनो संबंध–(तेनी श्रद्धा–ज्ञान–ने तेमां लीनता) कर, तो तने
तारा सुखनो अनुभव थशे. अज्ञानी माने छे के, शरीर ते धर्मनुं साधन,–अहीं कहे छे के
शरीरनो संबंध करवो ते दुःख छे. अरे, तुं चैतन्यमूर्ति! अने आ शरीर तो अचेतन–
जड ढींगलुं, ......तेमां तारुं सुख केम होय? तो शुं करवुं? के आत्मामां जवुं. हे जीव!
सुख बहारमां नथी, सुख अंतरमां छे. माटे स्ववस्तु शुं छे तेने जाण. तारो मोक्षमार्ग
एटले तारुं सुख तारा स्वद्रव्यना आश्रये ज छे. एम जाणीने अनुभूतिवडे स्वद्रव्यमां
प्रवेश कर तो तने अतीन्द्रिय सुख थशे. परना आश्रये तो आकुळता छे–दुःख छे. अरे,
दुःख केम छे, ने सुख केम थाय? एनी पण जेने खबर न होय ते सुखनो साचो उपाय
क््यांथी करे? ने एनुं दुःख केम टळे?