Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : आत्मधर्म : २७ :
आत्मा केम जणाय?
(जिज्ञासु शिष्यना हृदयनो प्रश्न: अने अनुभवनी तीव्र लगनी)
(परमात्मप्रकाश–प्रवचन)
*
* आत्मा केम जणाय?
आत्मा तरफना ज्ञानथी आत्मा जणाय.
* आत्मा तरफनुं ज्ञान केवुं छे?
आत्मा तरफनुं ज्ञान राग वगरनुं, वीतराग स्वसंवेदनरूप छे.
*आत्मा केवो छे?
आत्मा देहादिथी पार, विकल्पोथी पार, सदाय ज्ञान–आनंद स्वभावरूप छे. जेवा
सिद्धप्रभु छे तेवा स्वभावथी भरेलो आत्मा छे. आवा आत्मस्वरूपनुं स्वसंवेदन करे
त्यारे ज आत्मा सम्यक्पणे जणाय छे. पर तरफनुं ज्ञान के रागादि भावो तेनाथी
आत्मा जणातो नथी.
प्रभाकरभट्ट, एटले के आत्मज्ञाननो जिज्ञासु शिष्य पूछे छे के हे स्वामी! आ
आत्मा जे ज्ञानथी मने शीघ्र जणाय एवुं ज्ञान ज मारामां प्रकाशित करो; एना सिवाय
बीजा अनेक परभावोथी के बीजा जाणपणाथी मारे कांई प्रयोजन नथी. मने मारा
आत्मानो अनुभव थाय–ए सिवाय बीजुं कांई मारे जोईतुं नथी. माटे क्षणमात्रमां ए
अनुभव केम थाय–ते ज मने बतावो.
ज्ञानं प्रकाशय परमं मम किं अन्येन बहुना।
येन निजात्मा ज्ञायते स्वामीन् एक क्षणेन्।।१०४।।
आत्माना ज्ञान सिवाय समस्त बाह्य वृत्तिओनो महिमा शिष्यने ऊडी गयो छे.
अरे, आत्मज्ञान विना जीवने संसारमां कोई ठेकाणे जराय सुख नथी. आनंदनी प्राप्ति
आत्मज्ञान वडे ज थाय छे,–एम अंतरमां विचारीने विनयपूर्वक गुरु पासे तेनी ज
मांगणी करे छे के हे स्वामी! मारे बीजा विकल्पोनुं कांई प्रयोजन नथी, मारे तो
आत्मज्ञान जे रीते थाय ते ज उद्यम करवो छे. माटे शीघ्र आत्मज्ञान थाय एवो उत्तम
उपदेश आपो.