Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 31 of 37

background image
: २८ : आत्मधर्म : चैत्र :
जुओ, आ शिष्यनी जिज्ञासा! जगतनी बीजी जिज्ञासा छूटीने, जेने आत्माना
ज्ञाननी जिज्ञासा जागी तेना अंतरमांथी आवो प्रश्न ऊठे छे; एटले शुद्धात्मा सिवाय
बीजुं कांई तेने गमतुं नथी. एक ज रटण छे के हुं मारा आत्माने जाणुं, अने ते पण
क्षणमात्रमां जाणुं–एम तीव्र लगनी छे.
आवा आत्म–अभिलाषी शिष्यने समजावे छे के हे शिष्य! जे ज्ञान छे तेने ज तुं
आत्मा जाण. आत्मा ज्ञानप्रमाण छे. अहीं ‘ज्ञान’ कहेता तेमां रागादि परभाव न
आवे; आ समस्त पदार्थोने जाणनारुं जे ज्ञान छे, ते ज्ञान कोनुं छे? ज्ञानमां कोण
व्यापेलुं छे? ज्ञानमां व्यापेलो जे पदार्थ छे ते ज आत्मा छे, ते ज तुं छो. ज्ञान साथे
जेने तन्मयता छे ते ज आत्मा छे एम तुं जाण. ‘ज्ञान’ ने लक्षमां लेतां क्षणमात्रमां
आत्मा जणाय छे; तेमां एकदम निराकूळ शांति ने आनंदनुं वेदन छे. ज्ञानथी भिन्न
कोई आत्मा नथी. राग वगरनो आत्मा अनुभवमां आवे छे, पण ज्ञान वगरनो
आत्मा कदी अनुभवमां आवतो नथी. आ रीते ज्ञानस्वरूप आत्मा एक क्षणमां
अंर्तद्रष्टिथी देखाय छे. आ रीते ज्ञानस्वरूप आत्मा पोते पोताना ज्ञानभाव वडे
अनुभवमां आवे छे. आवो अनुभव अतीन्द्रिय–आनंदसहित होय छे. परभावनो
अभ्यास छोडीने स्वभावना वारंवार अभ्यासवडे आवो अनुभव थाय छे. ज्ञानने
परभावथी भिन्न करीने अंतरमां वाळतां क्षणमात्रमां आत्मस्वभाव प्रगट अनुभवमां
आवे छे.
***************
सोनगढ
* सोनगढमां फागण सुद बीजे सीमंधरप्रभुनी प्रतिष्ठानो
पच्चीसमो वार्षिकोत्सव हर्षोल्लासपूर्वक उजवायो हतो.
*फागण सुद ७ थी १प नंदीश्वरअष्टाह्निका दरमियान पंचमेरु
तथा नंदीश्वरमंडल विधान थयुं हतुं.
* परिवर्तन करवा पू. गुरुदेव सोनगढमां पधार्या ते दिवसे
फागण वद त्रीज हती; आ फागण वद त्रीजे ए प्रसंगने त्रीस वर्ष पूरा
थया. पू गुरुदेवनुं परिवर्तन, ते वखतनी परिस्थिति, अने त्यार पछी
थयेला शासनप्रभावनाना अनेक मधुर प्रसंगो, एनां ते दिवसे स्मरणो
जागतां हता.