Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : आत्मधर्म : २९ :
आ मासनी विविध वानगी
(फागण मास)
अनुभव: मोक्षनुं प्रवेशद्वार
* अनुभव एटले शु?
* अनुभव एटले वस्तुनो प्रत्यक्ष आस्वाद; आत्माना अतीन्द्रिय आनंदनो
प्रत्यक्ष आस्वाद आवे तेनुं नाम आत्मानो अनुभव.
* मोक्षमार्गनो भाव तो स्वानुभवमां समाय छे, ने रागादि भावो
स्वानुभूतिथी बहार रही जाय छे. आ रीते मोक्षमार्गनो भाव ने रागभाव–ए बंने
भावो ज जुदा छे. आवी भिन्नता अनुभव्या विना मोक्षमार्ग साधी शकाय नहि.
* मोक्षमार्गमां आवश्यकता शेनी?–के स्वानुभूतिनी.
स्वानुभूति विना मोक्षमार्ग साधी शकाय नहि.
*मोक्षमार्गीने वच्चे बीजा भावो हो पण तेमने आधीन मोक्षमार्ग नथी.
मोक्षमार्ग तो स्वानुभूतिने ज आधीन छे.
* स्वानुभूति वडे आत्मा पोते पोताना स्वरूपमां प्रवेशीने शुद्ध थाय छे; एटले
अनुभूति ते मोक्षनुं प्रवेशद्वार छे.
जैनशासनमां
शुद्ध चैतन्यवस्तुनो अनुभव ते जैनशासनमां उपादेय छे. अनुभवमां आवतो
आत्मा अतीन्द्रियस्वभावी छे, ते ईन्द्रयग्राही थतो नथी. शुद्धनयरूप ज्ञान वडे आवा
आत्मानी अनुभूति ते समस्त जिनशासन छे, ते अनुभूतिमां जैनशासन छे,
अनुभूतिथी जुदुं जैनशासन नथी; एटले रागादि भावो ते जैनशासन नहि, ते जैनधर्म
नहि, ते