Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : चैत्र :
मोक्षमार्ग नहि. ते परभावो जैनशासनथी बहार, एटले मोक्षमार्गथी बहार;
शुद्धात्मानी अनुभूतिथी जे बहार ते बधुंय जैनशासनथी बहार; जेने शुद्धात्मानी
अनुभूति नथी तेने जैनशासननी खबर नथी, ते खरेखर जैनशासनमां आव्यो नथी.
जेणे आत्मानी अनुभूति करी तेणे समस्त जिनशासननुं रहस्य जाणी लीधुं, ने ते
मोक्षमार्गमां आव्यो.
स्वानुभूतिमां बधुंय समाय छे
अहो, स्वानुभूति ते जैनदर्शननो मर्म छे. सम्यग्दर्शनथी मांडीने सिद्धपद सुधीनी
शुद्धता स्वानुभूति वडे प्रगटे छे. मोक्षमार्ग स्वानुभूतिमां समाय छे. संतो अने शास्त्रो
स्वानुभव करवानुं फरमावे छे. जे शास्त्र तरफ ज जोई रहे छे ने आत्मा तरफ वळीने
स्वानुभूति करतो नथी तेणे शास्त्रनी आज्ञा मानी नथी; जेणे स्वानुभव कर्यो तेणे सर्व
शास्त्रोनुं रहस्य जाणी लीधुं. आ रीते स्वानुभूतिमां सर्व शास्त्रोनुं रहस्य समाय छे.
स्वानुभूति थई त्यारे बधाने ओळख्या
जेने स्वानुभव नथी ते परमात्माना सुखने ओळखतो नथी. भगवानने जेवुं
अतीन्द्रिय सुख छे तेवा सुखनो अंश पोतामां स्वानुभवथी अनुभव्या वगर, एटले के
अतीन्द्रियज्ञानथी पोताना आत्माने अनुभव्या वगर, भगवानने केवुं सुख छे तेनी
ओळखाण थाय नहि. पोते एकला दुःखना स्वादमां (ने ईन्द्रियज्ञानमां) ऊभो रहीने
परमात्माना अतीन्द्रिय सुखने जाणी न शके.
ज्यां स्वानुभव थयो ने स्वभावनुं सुख चाख्युं त्यां भान थयुं के अहो,
आत्मानुं आवुं सुख! परमात्माने आवुं सुख पूर्ण छे, मुनिवरो आवा स्वभावसुखना
अनुभवमां लीन छे, समकिती जीवो आवा सुखने अनुभवे छे;–आम स्वानुभव थतां
बधायनी खरी ओळखाण थई.........ने पोते पण तेमनी नातमां भळ्‌यो.
परिणामनी शान्ति
परिणामनी शान्ति वगर ज्ञाननुं परिणमन थतुं नथी.