: चैत्र : आत्मधर्म : १ :
वर्ष २२ : अंक ६ : चैत्र २४९१ : April 1965.
ज्ञा न भा व ना
आत्मा ज्ञानस्वरूप छे.
बहारना गमे ते संयोग–सगवडना हो के अगवडना हो,
तेनाथी जुदुं अने ते संयोग तरफनी लागणीओथी जुदुं, जे
कोई तत्त्व अंतरमां छे ते ज हुं छुं. एम निजस्वरूपना
अस्तित्वने ओळखीने वारंवार तेनुं चिंतन ते ज्ञानभावना छे.
निजस्वरूपना चिंतनमां ज जेनुं मन लाग्युं होय, तेने
दुनियाना बीजा प्रसंगो सतावी शके नहि, डोलावी शके नहि.
ज्ञान ज हुं छुं, ज्ञानथी भिन्न बीजुं कांई हुं नथी–एम
सूक्ष्मबुद्धिथी भेद कर्यो त्यां ज्ञानमां ज एकत्वबुद्धि रही, एटले
ज्ञाननी ज भावना रही, ने बीजा भावोनी भावना छूटी गई;
आ रीते ज्ञानी सदा ज्ञानभावमां ज तत्पर छे.
ज्ञानने पामेला ज्ञानी संतना महिमाना विचार ते
ज्ञानभावनाने पोषण करनार छे. ज्ञानना महिमा साथे
वैराग्य पण घणो तीव्र होय ज्ञानभावना वैराग्यने पण तीव्र
बनावे छे.
ज्ञानभावनामां वीतरागी शान्ति छे.
ज्ञानभावना सर्वदुःखदमननुं अमोघ औषध छे.
ज्ञानभावनामां तत्पर ज्ञानीओने नमस्कार.