Atmadharma magazine - Ank 258
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : आत्मधर्म : ३ :
शुद्धात्माने जाणनार भेदज्ञानी धर्मात्मा देहना कोई धर्मोने आत्मामां जोडतो
नथी; ते तो पोताने देहथी भिन्न ज्ञानस्वरूप ज जाणे छे, सफेद के काळो हुं नथी, जाडो के
पातळो हूं नथी, स्त्री के पुरुषादि हुं नथी, मनुष्य के देवादि हुं नथी, कर्म के कर्मनुं फळ,
अने जेनाथी कर्म बंधाया ते विकारभाव, ए कोई हुं नथी. हुं तो ज्ञानमय अमूर्त छुं.
आवा आत्मानुं भावश्रुतथी जे संवेदन करे ते ज ज्ञानी छे, ने ए संवेदनज्ञान राग
वगरनुं छे. आवुं वीतरागी स्वसंवेदनज्ञान सम्यग्द्रष्टिने होय छे.
सम्यग्द्रष्टिने जेटली श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रनी निर्मळ परिणति थई छे तेटली
तो वीतराग परिणति छे. जे निर्मळ परिणति थई तेमां रागनी भेळसेळ नथी;
एमांथी रागनो बोजो उतरी गयो छे. ते देहादिथी पोताने अत्यंत जुदो जाणे छे,
ने ज्ञान आनंद साथे पोताने एकमेक अनुभवे छे. अज्ञानी तो देह ते ज हुं एम
एकमेकपणे अनुभवे छे. भाई सदाय उपयोगस्वरूप आत्मा छे ते जडरूप क््यांथी
थाय? देह ज ज्यां आत्माथी अत्यंत भिन्न छे त्यां देहसंबंधी कोई भेद आत्माने
क््यांथी होय? एटले बहारना द्रव्यलिंगथी तो आत्मा तद्न जुदो छे. आत्मामां
बहारनुं द्रव्यलिंग जरा पण नथी. अने अंतरमां मोक्षमार्गरूप जे वीतराग
निर्विकल्प समाधि छे ते शुद्धपर्यायने आत्मा कहेवो ते पण अंशमां पूर्णनो आरोप
होवाथी व्यवहार छे, अखंड शुद्ध आत्माने ज उपादेयरूप करवो ते निश्चय छे. ते
शुद्ध आत्माने उपादेय करीने तेमां एकाग्र थतां मोक्षपर्याय प्रगटे छे.
मोक्षमार्गपर्याय ते आनी साधक छे. पण आखो शुद्धात्मा ते साधकपर्याय जेटलो
ज नथी, माटे ते साधकपर्यायने जीव कहेवो ते पण उपचार कह्यो. त्यां विकारनी ने
परद्रव्यनी तो वात क््यांय बहार रही गई. आवा शुद्धात्माने प्रतीतमां–ज्ञानमां–
अनुभवमां ल्ये त्यारे ज मोक्षमार्ग ने मोक्षदशा प्रगटे छे. साधकपर्याय ते तो
स्वभावनो अंश छे, विकार के शरीर तो स्वभावनो अंश ज नथी, एने तो जीव
कहेवो ते असद्भूत छे; ने शुद्धपर्यायने जीव कहेवो ते पण अंशमां पूर्णतानो
उपचार होवाथी व्यवहार छे. शुद्धपर्यायनो भेद पाडया वगर शुद्धस्वभावने अखंड
प्रतीतमां लईने तेने ज उपादेय करवो–ए ज परमार्थतात्पर्य छे.
‘सत्’ उत्पाद–व्यय–धुवता सहित छे. एटले पूर्वना उत्पादमांथी नवो उत्पाद
नथी आवतो पण प्रत्येक समये द्रव्य पोते ज उत्पादरूपे ऊपजे छे; ते उत्पादनुं कारण
बीजुं कोई नथी. साधकपर्याय पोते साध्यरूप थती नथी, साध्यरूप तो द्रव्य पोते
परिणमे छे माटे एक साधकपर्यायने आत्मा कहेवो ते उपचार छे–व्यवहार छे. जेम
आंबानुं झाड केरीनुं दातार छे; तेमांथी नवी नवी केरी फूटे छे. पण नानी केरीमांथी
मोटी केरी