: १० : आत्मधर्म : वैशाख :
वक्ता अने
श्रोतानी चौभंगी
जगतमां वक्ता अने श्रोतानो योग केवा केवा
प्रकारनो होय छे, अने तेमां बंनेनी केवी स्वतंत्रता
छे! ते आ चौभंगी उपरथी ख्यालमां आवशे. चार
भंग जाणीने तेमां सौथी उत्तम जे चोथो प्रकार तेमां
शुद्धउपादानवडे पोते भळी जवुं.
(१) बंने अज्ञानी
कोईवार वक्ता अने श्रोता बंने अज्ञानी होय, त्यां निमित्त उपादान बंने अशुद्ध
छे. ज्यां अज्ञानीनो विपरीत उपदेश चालतो होय छतां जेने ते रुचे ते श्रोता पण
अशुद्ध उपादानवाळो छे; शुद्धउपादानवाळा जीवने एवो विपरीत उपदेश रुचे नहि.
श्रोता थईने ते एवो उपदेश स्वीकारे नहि. अज्ञानी वक्ताए खोटो उपदेश आप्यो माटे
श्रोताने खोटुं ज्ञान थयुं–एम नथी. श्रोतानुं उपादान एवुं अशुद्ध हतुं तेथी तेने एवो
उपदेश बेठो. निमित्त ने उपादान बंने स्वतंत्र, असहायी छे, कोई कोईने आधीन नथी–
ए सिद्धांत पहेलेथी कहेता आव्या छीए ते सर्वत्र लागु पाडवो. कोईवार अज्ञानी
शास्त्रअनुसार पण उपदेश आपतो होय ने अज्ञानी सांभळतो होय, पण स्वानुभवनुं
खरुं रहस्य तेमां आवे नहि, ने मोक्षमार्गनो प्रसंग त्यां बने नहि; केमके उपादान अने
निमित्त बंने अशुद्ध छे, बंने अज्ञानी छे.
(२) एक अज्ञानी, बीजो ज्ञानी
हवे कोईवार एवुं पण बने के वक्ता तो अज्ञानी होय ने श्रोता ज्ञानी होय, त्यां
निमित्त अशुद्ध छे ने उपादान शुद्ध छे. जुओ, निमित्त अशुद्ध छे पण ते कांई उपादानने
अशुद्धता नथी करतुं. बंने स्वतंत्रपणे पोतपोताना भावमां परिणमता होय, ज्ञानी कांई
ज्यां त्यां अज्ञानीना उपदेश सांभळवा जाय नहि; पण कोई मुनि वगेरे होय; बहारनो
व्यवहार चोख्खो होय ने शास्त्रअनुसार प्ररुपणा करता होय, अंदर कोई सूक्ष्म
मिथ्यात्वनो प्रकार तेमने रही गयो होय, कदाच बीजाने तेनो ख्याल न पण आवो; ने
ज्ञानी ते मुनिनी सभामां बेसीने सांभळता होय, वंदनादि व्यवहार पण करता होय;
त्यां वक्ता