Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : आत्मधर्म : ११ :
अहीं एक वात ध्यानमां राखवी के जे श्रोता ज्ञानी छे ते श्रोताने धर्म
आथी कोई एम कहे के निमित्त भले गमे तेवुं होय आपणे शुं वांधो छे?
गमे तेनी पासेथी सांभळवुं छे ने! माटे गमे तेवा अज्ञानी–कुगुरु–अन्यमतिनो
पण उपदेश सांभळवामां वांधो नथी,–तो तेनी वात साची नथी; ते मोटी
भ्रमणामां छे. भाई! तने एवा खोटा तत्त्वना श्रवणनो भाव केम आव्यो?
कुसंगनो भाव तने केम गोठे छे?–माटे तारुं उपादान पण अशुद्ध छे. जेवा तारा
वक्ता तेवो तुं.–बंने सरखा; एटले तारो कलास आ बीजा नंबरमां न आवे, पण
तारो कलास तो जे पहेलो नंबर कह्यो तेमां आवे.
(३) एक ज्ञानी, बीजो अज्ञानी
वक्ता ज्ञानी होय ने श्रोता अज्ञानी होय, त्यां निमित्त शुद्ध, ने उपादान
अशुद्ध छे; आ त्रीजो प्रकार तो सामान्यपणे जोवामां आवे ज छे. तीर्थंकर
भगवाननी सभामां तो