Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : वैशाख :
घणाय जीवो श्रोता होय छे, पण ते बधाय कांई सम्यग्दर्शन पामी जता नथी. तेथी
भैया भगवतीदासजी उपादान–निमित्तमां संवादमां कहे छे के:–
यह निमित्त ईह जीवको, मिल्यो अनंती वार;
उपादान पलटयो नहि, तो भटकत फिर्यो संसार. ९
केवली अरू मुनिराजके, पास रहे बहु लोय;
पै जाको सुलटयो धनी, सम्यक् ताको होय. ११
जुओने, निमित्त तरीके सर्वज्ञ जेवा वक्ता मळ्‌या, ने तेमनी वाणी
समवसरणमां बेठा बेठा सांभळी, छतां जेमनुं उपादान अशुद्ध हतुं ते जीवो अज्ञानी
रह्या.–निमित्त शुं करे? पोताना उपादाननी तैयारी विना भगवान पण समजावी द्ये
तेम नथी. शुद्धात्मानी एक ज वात ज्ञानी पासेथी एक साथे घणा जीवो सांभळे, तेमां
कोई ते समजीने तेवो अनुभव करी ल्ये छे, कोई जीवो तेवो अनुभव नथी करता.
निमित्तपणे एक ज वक्ता होवा छतां श्रोताना उपादान अनुसार उपदेश परिणमे छे.
आवी स्वतंत्रता छे. अहीं उत्कृष्ट ज्ञानीवक्ता तरीके तीर्थंकरदेवनो दाखलो लीधो तेम
चोथा गुणस्थानथी मांडीने बधांय ज्ञानी वक्तानुं समजी लेवुं.
(४) बंने ज्ञानी
कोई वार वक्ता ज्ञानी होय ने श्रोता पण ज्ञानी होय, त्यां उपादान ने निमित्ते
बंने शुद्ध छे;–आवो प्रकार पण जोवामां आवे छे. तीर्थंकरभगवाननी सभामां गणधरो
जेवा श्रोता बिराजता होय; जगतमां सौथी उत्तम वक्ता तीर्थंकरदेव, ने सौथी उत्तम
श्रोता गणधरदेव, अहा! ए वीतरागी वक्ता ने ए श्रोतानी शी वात! ज्यां सर्वज्ञ
जेवा वक्ता... ने चार ज्ञानधारी श्रोता....ए सभाना दिव्य देदारनी शी वात!! ने
भगवाननी वाणी एक समयमां पूरुं रहस्य लेती आवे, गणधरदेव एकाग्रपणे ते
झीलतां झीलतां स्वरूपमां ठरी जाय. भगवाननी सभामां बीजा पण लाखो करोडो
ज्ञानीओ होय, तिर्यंचो पण त्यां धर्म पामे. सामे उपादान जाग्युं एनी शी वात! उत्कृष्ट
उपादान जागे त्यां सामे निमित्त पण उत्कृष्ट होय.–छतां बंने स्वतंत्र. वक्तापणुं तेरमा
गुणस्थाने पण होय परंतु श्रोतापणुं छठ्ठा गुणस्थान सुधी ज छे. पछी उपरना
गुणस्थाने तो उपयोग निर्विकल्प थईने स्वरूपमां थंभी गयो छे, त्यां वाणी तरफ लक्ष
नथी. तीर्थंकरदेव सर्वत्र–