भैया भगवतीदासजी उपादान–निमित्तमां संवादमां कहे छे के:–
उपादान पलटयो नहि, तो भटकत फिर्यो संसार. ९
केवली अरू मुनिराजके, पास रहे बहु लोय;
पै जाको सुलटयो धनी, सम्यक् ताको होय. ११
रह्या.–निमित्त शुं करे? पोताना उपादाननी तैयारी विना भगवान पण समजावी द्ये
तेम नथी. शुद्धात्मानी एक ज वात ज्ञानी पासेथी एक साथे घणा जीवो सांभळे, तेमां
कोई ते समजीने तेवो अनुभव करी ल्ये छे, कोई जीवो तेवो अनुभव नथी करता.
निमित्तपणे एक ज वक्ता होवा छतां श्रोताना उपादान अनुसार उपदेश परिणमे छे.
आवी स्वतंत्रता छे. अहीं उत्कृष्ट ज्ञानीवक्ता तरीके तीर्थंकरदेवनो दाखलो लीधो तेम
चोथा गुणस्थानथी मांडीने बधांय ज्ञानी वक्तानुं समजी लेवुं.
जेवा श्रोता बिराजता होय; जगतमां सौथी उत्तम वक्ता तीर्थंकरदेव, ने सौथी उत्तम
श्रोता गणधरदेव, अहा! ए वीतरागी वक्ता ने ए श्रोतानी शी वात! ज्यां सर्वज्ञ
जेवा वक्ता... ने चार ज्ञानधारी श्रोता....ए सभाना दिव्य देदारनी शी वात!! ने
भगवाननी वाणी एक समयमां पूरुं रहस्य लेती आवे, गणधरदेव एकाग्रपणे ते
झीलतां झीलतां स्वरूपमां ठरी जाय. भगवाननी सभामां बीजा पण लाखो करोडो
ज्ञानीओ होय, तिर्यंचो पण त्यां धर्म पामे. सामे उपादान जाग्युं एनी शी वात! उत्कृष्ट
उपादान जागे त्यां सामे निमित्त पण उत्कृष्ट होय.–छतां बंने स्वतंत्र. वक्तापणुं तेरमा
गुणस्थाने पण होय परंतु श्रोतापणुं छठ्ठा गुणस्थान सुधी ज छे. पछी उपरना
गुणस्थाने तो उपयोग निर्विकल्प थईने स्वरूपमां थंभी गयो छे, त्यां वाणी तरफ लक्ष
नथी. तीर्थंकरदेव सर्वत्र–