Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : वैशाख :
सर्वज्ञस्वरूपने अनुसरनारी
जिनवाणीने नमस्कार
(कलशटीका–प्रवचनो)
पहेला कळशमां शुद्धात्माने नमस्कार कर्या; हवे
बीजा कळशमां ते शुद्धात्माने दर्शावनारी दिव्यध्वनि–
जिनवाणीने नमस्कार करे छे; वाणी जड होवा छतां
तेने शा माटे नमस्कार कर्या? तेनुं समाधान करतां
कहे छे के ते वाणी सर्वज्ञस्वरूप–अनुसारिणी छे, तेथी
ते पण वंदनीय छे.

अनंतधर्मणस्तत्त्वं पश्यन्ती प्रत्यात्मनः।
अनेकान्तमयी मुर्तिर्नित्यमेव प्रकाशताम्।।२।।
जिनवाणीना निमित्तथी प्रगटेली शुद्धात्मानी अनुभूति त्रिकाळ जयवंत रहो,
एवी भावना छे त्यां निमित्तरूप वाणी पण जयवंत रहो–एम कहीने जिनवाणीनुं
जिनवाणी केवी छे? अनेकान्तमयी छे; पदार्थ जेवा अनेक धर्मोस्वरूप छे तेवा
अनेक धर्मोने कहेनारी अनेकान्तमय जिनवाणी छे. एक वस्तुना अनेक धर्मोने कहेनारी
आशंका:– अनेकान्त तो संशयरूप छे, वस्तुने नित्य पण कहे छे ने वळी अनित्य
पण कहे छे, चोक्कस कांई कहेतो नथी माटे अनेकान्त तो संशयरूप छे, तेथी ते मिथ्या
समाधान: नहीं; अनेकान्त तो संशयने दूर करनार छे, अने वस्तुस्वरूपना
साधन– शील छे, अर्थात् अनेकान्त तो वस्तुस्वरूपने जेम छे तेम साधे छे,
अनेकान्तनो स्वभाव वस्तुस्वरूपने साधवानो छे, ने वस्तुस्वरूपनो निर्णय करावीने
ते संशयने छेदे छे.