तो एक द्रव्य, तेने ज भेदथी जुओ तो अनंत गुणो,–आम सत्ता अनेकान्तस्वरूप छे.
अनादि अनंत आवुं ज वस्तुस्वरूप छे, तेने अनेकान्त प्रसिद्ध करे छे. वस्तु स्वयमेव
अनेकान्तस्वरूप छे, तेने कोईनो सहारो नथी. आवा अनेकान्तस्वरूपने प्रकाशनारी
जिनवाणीने नमस्कार कर्या छे. ‘ते सदाय प्रकाशमान रहो’ एम कहीने तेनुं बहुमान
कर्युं तेमां नमस्कार आवी गया.
शुद्धआत्मा. शुद्धआत्मा एटले सर्वज्ञ–वीतरागस्वभावी आत्मा; आवा सर्वज्ञस्वरूपने
अनुसरनारी एटले के तेना स्वरूपने कहेनारी जिनवाणी छे. आवी सर्वज्ञस्वरूप–
अनुसारिणी जिनवाणीने न माने, तेने अचेतन कहीने निषेधे तो चाले नहि. भाई, ते
वाणी भले अचेतन छे, पण ते सर्वज्ञस्वरूपने अनुसरनारी छे, जेवुं सर्वज्ञस्वरूप छे
तेवुं ज स्वरूप ते कहे छे. ज्ञानमां जाणवानो स्वभाव छे, कहेवानो स्वभाव नथी;
वाणीमां कहेवानो स्वभाव छे, जाणवानो स्वभाव नथी, पण सर्वज्ञे जेवुं वस्तुस्वरूप
जाण्युं तेवुं ज वस्तुस्वरूप दिव्यध्वनिमां आवे छे, –एवो ज वाणीनो स्वभाव छे; तेथी
ते दिव्यध्वनिरूप वाणीने ‘सर्वज्ञस्वरूप–अनुसारिणी’ कही छे. एटले कोई पूछे के
‘अचेतन वाणीने नमस्कार केम कर्या? ’–तो तेनुं आमां समाधान आवी जाय छे.
तेने अनुसरनारी थई. जेवुं शुद्धस्वरूप सर्वज्ञना ज्ञानमां आव्युं तेवुं ज वाणीमां आव्युं.
ज्ञानमां जे आव्युं तेनाथी विरुद्ध वाणीमां न आवे, तेथी आवी सर्वज्ञस्वरूपने
अनुसरनारी जिनवाणीनुं पण बहुमान कर्युं छे.
शंका–:
एम कह्युं, ने अहीं वळी दिव्यध्वनिने नमस्कार कर्या? दिव्यध्वनि तो अजीव छे.
अचेतन छे, तेने केम नमस्कार कर्या?
धोध....ए तो सांभळ्या